"नौटंकी": अवतरणों में अंतर

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==इतिहास और विकास==
अधिकतर समीक्षकों का मानना है कि 'नौटंकी स्वांग शैली का ही एक विकसित रूप है'।<ref name="smn43fs">[http://www.abhivyakti-hindi.org/natak/rangmanch/2009/nautanki.htm अभिव्यक्ति], नारायण भक्त, ''... यह कहना कठिन है कि नौटंकी का मंच कब स्थापित हुआ और पहली बार कब इसका प्रदर्शन हुआ, किंतु यह सभी मानते हैं कि नौटंकी स्वांग शैली का ही एक विकसित रूप है। भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र में जिस ''सट्टक'' को नाटक का एक भेद माना है, इसके विषय में महाकवि एवं नाटककार जयशंकर प्रसाद तथा हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का कहना है कि सट्टक नौटंकी के ढंग के ही एक तमाशे का नाम है ...'''</ref> नौटंकी कि कथाएँ अक्सर किसी व्यक्ति पर या महत्वपूर्ण विषय पर होती हैं, मसलन 'सुल्ताना डाकू' इसी नाम के [[उत्तर प्रदेश]] के [[बिजनौर ज़िले]] में हुए एक [[डाकू]] की कहानी बताती है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उस विषय पर बहुत सी नौटंकियां हुईं थी जिन्होनें जन-साधारण को इस संग्राम में शामिल होने की प्रेरणा दी। आजकल दहेज़-कुप्रथा, आतंकवाद और साम्प्रदायिक लड़ाई-झगड़ों के विरुद्ध नौटंकियाँ देखी जा सकती हैं।<ref name="ref59babaj"/> दर्शकों की रूचि बनाए रखने के लिए नौटंकियों में अक्सर प्रेम-सम्बन्ध के भी कुछ तत्व होते हैं जिनका प्रयोग अश्लीलता के लिए भी किया जा सकता है। इसलिए बहुत सी अश्लील नौटंकियाँ भी डेढ़-सौ साल से चलती आ रहीं हैं, जिस से अक्सर नौटंकी की शैली बदनाम भी होती आई है।<ref name="ref59babaj"/> पारम्परिक रूप से नौटंकियों में पैसा बनाने के लिए यह ज़रूरी था कि दर्शकों को कभी भी ऊबने न दिया जाए, इसलिए अधिकतर नौटंकियों में १० मिनट या उस से कम अवधि की घटनाओं को एक सिलसिले में जोड़कर बनाया जाता है जिसमें हर भाग में दर्शकों की रूचि बनाए रखने की कोशिश की जाती है। कहानी दिलचस्प रखने के लिए वीरता, प्रेम, मज़ाक़, गाने-नाचने और धर्म को मिलाया जाता है और कथाकार प्रयास करता है की दर्शकों की भावनाएँ लगातार ऊपर-नीचे हों और बदलती रहें।
 
==कविता==
नौटंकी में कविता और साधारण बोलचाल को मिलाने की प्रथा शुरू से रही है। पात्र आपस में बातें करते हैं लेकिन गहरी भावनाओं और संदेशों को अक्सर तुकबंदी के ज़रिये प्रकट किया जाता है। गाने में [[सारंगी]], [[तबले]], [[हारमोनियम]] और [[नगाड़े]] जैसे वाद्य इस्तेमाल होते हैं। मिसाल के लिए 'सुल्ताना डाकू' के एक रूप में सुल्ताना अपनी प्रेमिका को समझाता है कि वह ग़रीबों की सहायता करने के लिए पैदा हुआ है और इसीलिए अमीरों को लूटता है। उसकी प्रेमिका (नील कँवल) कहती है कि उसे सुल्ताना की वीरता पर नाज़ है (इसमें रूहेलखंड की कुछ खड़ी-बोली है):
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:'''सुल्ताना'''
:प्यारी कंगाल किस को समझती है तू?
:कोई मुझ सा दबंगर न रश्क-ए-कमर
:जब हो ख़्वाहिश मुझे लाऊँ दम-भर में तब
:क्योंकि मेरी दौलत जमा है अमीरों के घर
:'''नील कँवल'''
:आफ़रीन, आफ़रीन, उस ख़ुदा के लिए
:जिसने ऐसे बहादुर बनाए हो तुम
:मेरी क़िस्मत को भी आफ़रीन, आफ़रीन
:जिस से सरताज मेरे कहाए हो तुम
:'''सुल्ताना'''
:पा के ज़र जो न ख़ैरात कौड़ी करे
:उन का दुश्मन ख़ुदा ने बनाया हूँ मैं
:जिन ग़रीबों का ग़मख़्वार कोई नहीं
:उन का ग़मख़्वार पैदा हो आया हूँ मैं
|
:'''सुल्ताना'''
:प्यारी कंगाल किस को समझती है तू?
:कोई मुझ-सा दबंग नहीं
:जब मेरी मर्ज़ी हो एक सांस में ला सकता हूँ
:क्योंकि मेरी दौलत जमा है अमीरों के घर
:'''नील कँवल'''
:वाह, वाह, उस ख़ुदा के लिए
:जिसने ऐसे बहादुर बनाए हो तुम
:मेरी क़िस्मत को भी वाह, वाह
:जिस से सरताज मेरे कहाए हो तुम
:'''सुल्ताना'''
:पा के सोना जो कौड़ी भी न दान करे
:ख़ुदा ने मुझे उनका दुश्मन बनाया है
:जिन ग़रीबों का दर्द बांटने वाला कोई नहीं
:उन का दर्द हटाने वाला बनकर मैं पैदा हुआ हूँ
|}
 
==इन्हें भी देखें==