"कारलूक लोग": अवतरणों में अंतर

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कारलूक [[गोएकतुर्क ख़ागानत]] के अधीन हुआ करते थे। सन् ७४२ ई में वे उइग़ुर और [[बसमिल]] क़बीलों के साथ मिलकर [[गोएकतुर्क ख़ागानत]] के विरुद्ध बग़ावत में उठे। ७४४ में बसमिलों ने गोएकतुर्क राजधानी ओतुगेन (<small>Ötügen</small>) और राजा ओज़मिश ख़ान (<small>Özmish Khan</small>) पर क़ब्ज़ा कर लिया। लेकिन उसी साल उइग़ुरों और क़ारलूक़ों ने आपसी सांठगांठ कर ली और मिलकर बसमिलों पर हमला कर दिया। बसमिलों के राजा का सिर क़लम कर दिया गया और पूरे क़बीले के लोगों को ग़ुलाम बनाकर या तो अन्य क़बीलों में बाँट दिया गया या चीनियों को बेच दिया गया। उइग़ुर सरदार अब इस नई [[ख़ागानत]] का [[ख़ागान]] बना और क़ारलूक़ उसके अधीन राजपाल बना। एक साल के अन्दर-अन्दर उइग़ुरों और क़ारलूक़ों में झड़पें शुरू हो गई और क़ारलूक़ों को मजबूरन अपनी ज़मीनें छोड़कर पश्चिम की ओर जाना पड़ा।<ref name="ref22xuyid">[http://books.google.com/books?id=7G61UifCEZMC The Tibetan Empire in Central Asia: A History of the Struggle for Great Power Among Tibetans, Turks, Arabs, and Chinese During the Early Middle Ages], Christopher I. Beckwith, Princeton University Press, 1993, ISBN 9780691024691, ''... The Basmïl qaghan began his regime by decapitating the last qaghan of the Türk dynasty. The situation changed, however, when the Uyghurs and Qarluqs, along with Wang Chung-ssu, the T'ang Military Governor of Shuo-fang, killed the Basmïl qaghan and enslaved his people toward the end of 744. The Uyghurs then made their own leader qaghan over the Eastern Turks, and began oppressing the Qarluqs. As a result, the 'three-surnamed' Qarluq tribes migrated in 745 into the lands of the Western Turks ...''</ref>
 
कारलूकों के पश्चिम जाने से उन्होंने [[तुर्की भाषाओँ]] को [[मध्य एशिया]] के अधिक विस्तृत हिस्सों में फैलाया। ७५१ ईसवी में [[मुस्लिम]] अरब सेना मध्य एशिया में चीन के [[तंग राजवंश]] के साथ टकराई। पहले तो कारलूकों ने चीनियों का साथ दिया लेकिन फिर दल बदलकर अरबों के साथ हो गए जिस से चीनियों की हार हुई और मध्य एशिया का एक बड़ा भू-भाग चीनी प्रभाव से बहार हो गया। ७६६ में पूर्वी [[काज़ाख़स्तान]] में कारलूक राज्य की स्थापना हुई जिसकी पूर्व में [[उईग़ुर ख़ागानत]] से सीमा थी। जब ८४० के बाद उईग़ुर ख़ागानत ख़त्म होने लगी तो कारलूक राज्य पूर्व की और बढ़ा और कारलूकों ने बहुत से उईग़ुरों को साथ मिलकर अपनी नयी [[काराख़ानी ख़ानत]] (<small>Kara-Khanid Khanate</small>) स्थापित की। ९४३ में इसके शासक, सातुक बूग़रा ख़ान (<small>[[उईग़ुर भाषा]]: {{Nastaliq|ur|سۇتۇق بۇغراخان}}</small>), ने [[इस्लाम]] अपना लिया और उसके बाद यह इस [[ख़ानत]] का राजधर्म हो गया। १२वीं सदी के शुरू में [[सल्जूक तुर्कों]] ने काराख़ानीयों से [[आमू-पार क्षेत्र]] छीन लिए। ११३० में [[कारा-ख़ितान ख़ानत]] ने सेल्जूकों और काराख़ानीयों की मिली-जुली फ़ौज को हरा दिया। काराख़ानी फिर-भी किसी तरह अपनी पहचान बनाए रहे लेकिन १२११ में ख़्वारिज़मी राजवंश ने उन्हें हमेशा के लिए हरा दिया और काराख़ानी फिर कभी एक शक्ति के रूप में नहीं उभरे।<ref name="ref85qizag"/>
 
==इन्हें भी देखें==