"संजीव कुमार": अवतरणों में अंतर

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'''संजीव कुमार''' हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध [[अभिनेता]] हैं ।
महान कलाकार हरिहर जरीवाल उर्फ संजीव कुमार का नाम फिल्मजगत की आकाशगंगा में एक ऐसे धुव्रतारे की तरह याद किया जाता है जिनके बेमिसाल अभिनय से सुसज्जित फिल्मों की रोशनी से बॉलीवुड हमेशा जगमगाता रहेगा.वे मूल रूप से गुजराती थे। उन्होंने [[नया दिन नयी रात]] फिल्म में नौ रोल किये थे। [[कोशिश]] फिल्म में उन्होंने गूंगे बहरे व्यक्ति का शानदार [[अभिनय]] किया था। [[शोले]] फिल्म में ठाकुर का चरित्र उनके अभिनय से अमर हो गया।
 
== जीवन ==
संजीव कुमार का जनमजन्म [[गुजरात]]मुंबई केमें एक9 गुजरतीजुलाई 1938 को एकमध्यम वर्गीय गुजराती परिवार में हुआ. था। इनका असली नाम हरिहर जारिवालाजारिवाल था. इनका पैतृक निवास [[सूरत]] था, बाद में इनका परिवार [[मुंबई]] आ गया. वह बचपन से हीं फिल्मों में बतौर अभिनेता काम करने का सपना देखा करते थे। फिल्म के प्रति जनूनजुनून इन्हें [[भारतीय चलचित्र|भारतीय फिल्म उद्योग]] ले आया. अपने जीवन के शुरूआती दौर मे रंगमंच से जुड़े और बाद में उन्होंने फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया। इसी दौरान वर्ष 1960 में उन्हें फिल्मालय बैनर की फिल्म हम हिन्दुस्तानी में एक छोटी सी भूमिका निभाने का मौका मिला। जहाँ ये एक प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता बने. ये आजीवन कुंवारे रहे और सन १९८५1984 में हृदय गति के रुक जाने से इनकी मृत्यु हुई. ये अपने व्यव्हार, विशिष्ट अभिनय शैली के लिए जाने जाते है. संजीव कुमार ने विवाह नहीं की परन्तु प्रेम कई बार किया था. इन्हें यह अन्धविश्वास था की इनके परिवार में बड़े पुत्र के १०10 वर्ष का होने पर पिता की मृतुमृत्यु हो जाती है. इनके दादा, पिता, और भाई के साथ यह हो चूकाचुका था. संजीव कुमार ने अपने दिवंगत भाई के बेटे को गोद लिया और उसके दस वर्ष का होने पर उनकी मृत्यु हो गयी ! संजीव कुमार को भोजन के बहुत शौक़ीन थे. बीस वर्ष की आयु में गरीब माध्यम वर्ग के इस युवा ने रंगमच में कम करना शुरू किया. इन्होने छोटी भूमिकाओ से कोई परहेज नहीं किया. एच.अस.रवैल की '[[संघर्ष (1968 फ़िल्म)|संघर्ष]]' में [[दिलीप कुमार]] की बाँहों में दम तोड़ने का दृश्य इतना शानदार किया की अभिनय सम्राट भी सकते में आ गए. सितारा हो जाने के बावजूद भी उन्होंने कभी नखरे नहीं किये. इन्होने [[जया बच्चन]] के स्वसुर, प्रेमी, पिता, पति की भूमिकाएँ भी निभाई. जब लेखक [[सलीम ख़ान]] ने इनसे [[त्रिशूल]] में अपने समकालीन [[अमिताभ बच्चन]] और [[शशि कपूर]] के पिता की भूमिका निभाने का अगढ़ किया तो उन्होंने बेझिजक यह भूमिका इस शानदार ढंग से निभाई की उन्हें ही केंद्रीय पत्र मान लिया गया. इन्होंने बीस वर्ष की आयु में वृद्ध आदमी की भूमिका इतनी खूबी से निभाई कि [[पृथ्वीराज कपूर]] देखकर दंग रह गए.
 
== कैरियर ==
===फिल्मी सफर===
संजीव कुमार ने अपनी करिअर की शुरुआत 1960 में बनी फिल्म ''[[हम हिन्दुस्तानी (1960 फ़िल्म)|हम हिन्दुस्तानी]]'' से की. वर्ष 1962 में राजश्री प्रोडक्शन की निर्मित फिल्म आरती के लिए। उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया जिसमें वह पास नही हो सके। सर्वप्रथम मुख्य अभिनेता के रूप में संजीव कुमार को वर्ष 1965 में प्रदर्शित फिल्म निशान में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1960 से वर्ष 1968 तक संजीव कुमार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। फिल्म हम हिंदुस्तानी के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गए। इस बीच उन्होंने स्मगलर, पति-पत्नी, हुस्न और इश्क, बादल, नौनिहाल और गुनहगार जैसी कई फिल्मों में अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई।
संजीव कुमार ने अपनी करिअर की शुरुआत १९६० में बनी फिल्म ''[[हम हिन्दुस्तानी (1960 फ़िल्म)|हम हिन्दुस्तानी]]'' से की. नायक के रूप में इनकी पहली फिल्म ''[[निशान]]'' (१९६८) थी. इन्होंने [[दिलीप कुमार]] के साथ ''[[संघर्ष (1968 फ़िल्म)|संघर्ष]]'' (१९६८) फिल्म में काम किया. फिल्म ''[[खिलौना (1970 फ़िल्म)|खिलौना]]'' ने इन्हें स्टार का दर्जा दिलाया. इसके बाद इनकी हिट फिल्म ''[[सीता और गीता (1972 फ़िल्म)|सीता और गीता]]'' (१९७२) और ''[[मनचली (1973 फ़िल्म)|मनचली]]'' (१९७३) प्रदर्शित हुईं. ७० के दशक में इन्होने [[गुलज़ार (गीतकार)|गुलज़ार]] जैसे दिग्दर्शक के साथ काम किया. इन्होने गुलज़ार के साथ कुल ९ फिल्मे की जिनमे ''[[आँधी (1975 फ़िल्म)|आंधी]]'' (१९७५), ''[[मौसम (1975 फ़िल्म)|मौसम]]'' (१९७५), ''[[अंगूर (1982 फ़िल्म)|अंगूर]]'' (१९८२), ''[[नमकीन (1982 फ़िल्म)|नमकीन]]'' (१९८२) प्रमुख है. इनके कुछ प्रशंसक इन फिल्मों को इनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मो में से मानते है. फिल्म ''[[शोले (1975 फ़िल्म)|शोले]]'' (१९७५) में इनसे अभिनीत पात्र ठाकुर आज भी लोगो के दिलो में ज़िंदा है जो मिमिक्री कलाकारों के लिए एक मसाला है.
वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म शिकार में वह पुलिस ऑफिसर की भूमिका में दिखाई दिए। यह फिल्म पूरी तरह अभिनेता धर्मेन्द्र पर केन्द्रित थी फिर भी सजीव कुमार धर्मेन्द्र जैसे अभिनेता की उपस्थिति में अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला।
संजीववर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म संघर्ष में उनके सामने हिन्दी फिल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार नेथे लेकिन संजीव कुमार अपनी करिअरछोटी सी भूमिका के जरिए दर्शकों की शुरुआतवाहवाही १९६०लूट ली। इसके बाद आशीर्वाद, राजा और रंक, सत्याकाम और अनोखी रात जैसी फिल्मों में बनीमिली कामयाबी के जरिए संजीव कुमार दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसी स्थिति में पहुंच गए जहां वह फिल्म ''[[हममें हिन्दुस्तानीअपनी (1960भूमिका फ़िल्म)|हमस्वयं हिन्दुस्तानी]]''चुन सेसकते थे। वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म खिलौना की. नायकजबर्दस्त कामयाबी के रूपबाद संजीव कुमार बतौर अभिनेता अपनी अलग पहचान बना ली। वर्ष 1970 में इनकीही पहलीप्रदर्शित फिल्म ''[[निशान]]''दस्तक (१९६८)में थी.उनके लाजवाब अभिनय के लिए वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित कि या गया। वर्ष 1972 में प्रदर्शित फिल्म कोशिश में उनके अभिनय का नया आयाम दर्शकों को देखने को मिला। फिल्म कोशिश में गूंगे की भूमिका निभाना किसी भी अभिनेता के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। बगैर संवाद बोले सिर्फ आंखों और चेहरे के भाव से दर्शकों को सब कुछ बता देना संजीव कुमार की अभिनय प्रतिभा का ऐसा उदाहरण था जिसे शायद ही कोई अभिनेता दोहरा पाए। इन्होंने [[दिलीप कुमार]] के साथ ''[[संघर्ष (1968 फ़िल्म)|संघर्ष]]'' (१९६८1968) फिल्म में काम किया. फिल्म ''[[खिलौना (1970 फ़िल्म)|खिलौना]]'' ने इन्हें स्टार का दर्जा दिलाया. इसके बाद इनकी हिट फिल्म ''[[सीता और गीता (1972 फ़िल्म)|सीता और गीता]]'' (१९७२1972) और ''[[मनचली (1973 फ़िल्म)|मनचली]]'' (१९७३1973) प्रदर्शित हुईं. ७०70 के दशक में इन्होने [[गुलज़ार (गीतकार)|गुलज़ार]] जैसे दिग्दर्शक के साथ काम किया. इन्होने गुलज़ार के साथ कुल 9 फिल्मे की जिनमे ''[[आँधी (1975 फ़िल्म)|आंधी]]'' (१९७५), ''[[मौसम (1975 फ़िल्म)|मौसम]]'' (१९७५), ''[[अंगूर (1982 फ़िल्म)|अंगूर]]'' (१९८२), ''[[नमकीन (1982 फ़िल्म)|नमकीन]]'' (१९८२) प्रमुख है. इनके कुछ प्रशंसक इन फिल्मों को इनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मो में से मानते है. फिल्म ''[[शोले (1975 फ़िल्म)|शोले]]'' (१९७५) में इनसे अभिनीत पात्र ठाकुर आज भी लोगो के दिलो में ज़िंदा है जो मिमिक्री कलाकारों के लिए एक मसाला है.
 
==प्रमुख फिल्में==