"दशरथ": अवतरणों में अंतर
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==राम का जन्म==
दशरथ अधेड़ उम्र तक पहुँच गये थे लेकिन उनका वंश सम्हालने के लिए उनका पुत्र रूपी कोई वंशज नहीं था। उन्होंने पुत्र कामना के लिए [[अश्वमेध यज्ञ]] तथा [[पुत्रकामेष्टि]] यज्ञ कराने का विचार किया। उनके एक मंत्री [[सुमन्त्र]] ने उन्हें सलाह दी कि वह यह यज्ञ अपने दामाद ऋष्यश्रृंग या साधारण की बोलचाल में श्रृंगि ऋषि से करवायें। दशरथ के कुल गुरु ब्रह्मर्षि [[वशिष्ठ]] थे। वह उनके धर्म गुरु भी थे तथा धार्मिक मंत्री भी। उनके सारे धार्मिक अनुष्ठानों की अध्यक्षता करने का अधिकार केवल धर्म गुरु को ही था। अतः वशिष्ठ की आज्ञा लेकर दशरथ ने श्रृंगि ऋषि को यज्ञ की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया। <br/>
श्रृंगि ऋषि ने दोनों यज्ञ भलि भांति पूर्ण करवाये तथा पुत्रकामेष्टि यज्ञ के दौरान यज्ञ वेदि से एक आलौकिक '''यज्ञ पुरुष''' या '''प्रजापत्य पुरुष''' उत्पन्न हुआ तथा दशरथ को स्वर्णपात्र में [[नैवेद्य]] का प्रसाद प्रदान करके यह कहा कि अपनी पत्नियों को यह प्रसाद खिला कर वह पुत्र प्राप्ति कर सकते हैं। दशरथ इस बात से अति प्रसन्न हुये और उन्होंने अपनी पट्टरानी कौशल्या को उस प्रसाद का आधा भाग खिला दिया। बचे हुये भाग का आधा भाग (एक चौथाई) दशरथ ने अपनी दूसरी रानी सुमित्रा को दिया। उसके बचे हुये भाग का आधा हिस्सा (एक बटा आठवाँ) उन्होंने कैकेयी को दिया। कुछ सोचकर उन्होंने बचा हुआ आठवाँ भाग भी सुमित्रा को दे दिया। सुमित्रा ने पहला भाग भी यह जानकर नहीं खाया था कि जब तक राजा दशरथ कैकेयी को उसका हिस्सा नहीं दे देते तब तक वह अपना हिस्सा नहीं खायेगी। अब कैकेयी ने अपना हिस्सा पहले खा लिया और तत्पश्चात् सुमित्रा ने अपना हिस्सा खाया।<ref> {{cite web | url = http://www.valmikiramayan.net/bala/sarga16/bala_16_frame.htm | title = राम जन्म | accessdate = 2012-05-07}}</ref> इसी कारण राम (कौशल्या से), भरत (कैकेयी से) तथा लक्ष्मण व शत्रुघ्न (सुमित्रा से) का जन्म हुआ।
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
{{साँचा:श्री राम चरित मानस}}
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