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'''ओंकारनाथ ठाकुर''' (1897–1967) भारत के शिक्षाशास्त्री, संगीतज्ञ एवं [[हिन्दुस्तानी संगीत|हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीतकार]] थे।
 
श्री ओंकारनाथ ठाकुर का जन्म [[गुजरात]] के बड़ोदा राज्य में एक गरीब परिवार में हुआ था। उन्होने [[वाराणसी]] में महामना पं. [[मदनमोहन मालवीय]] के आग्रह पर[[ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]] में संगीत के आचार्य पद की गरिमा में इज़ाफ़ा किया. वे तत्कालीन संगीत परिदृष्य के सबसे आकर्षक व्यक्तित्व थे. महान रंगकर्मी [[पृथ्वीराज कपूर]] एक बार बी.एच.यू. पधारे तो उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा कि पं. ओंकारनाथ ठाकुर से जैसा व्यक्तित्व तो रंगकर्म की विधा में होना चाहिये था. पचास और साठ के दशक में पण्डितजी की महफ़िलों का जलवा पूरे देश के मंचों पर छाया रहा. पं. ओंकारनाथ ठाकुर की गायकी में रंजकता का समावेश तो था ही; वे शास्त्र के अलावा भी अपनी गायकी में ऐसे रंग उड़ेलते थे कि एक सामान्य श्रोता भी उनकी कलाकारी का मुरीद हो जाता. उनका गाया [[वंदेमातरम]] या 'मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो' सुनने पर एक रूहानी अनुभूति होती है.
 
==बाहरी कड़ियाँ==