"संविदा निर्माण": अवतरणों में अंतर

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वह प्रत्येक वचन अथवा करार जो कानून द्वारा प्रवर्तनीय हो अथवा जिसका कानून द्वारा पालन कराया जा सके, '''संविदा''' (ठीका, अनुबंधअनुबन्ध, कान्ट्रैक्ट) कहलाता है। वर्तमान संविदा की विशेषता उसकी कानूनी मान्यता है।
 
== करार की ऐतिहासिकता ==
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व्यावसायिक और कानूनी दृष्टि से इस सम्बन्ध में रोम का कानूनी इतिहास रोचक है। वहाँ संविदा का प्राचीनतम स्वरूप (nexum) था। अपने मूल रूप में यह उधार वस्तुविक्रय से सम्बन्धित था। धीरे धीरे ऋण के लिये भी इसका प्रयोग होने लगा। इसकी कतिपय औपचारिकताएँ थीं जिनके बिना (nexum) की पूर्णता प्राप्त नहीं होती थी।
 
भारत में भी नारद और वृहस्पति के ग्रंथोंग्रन्थों में वस्तुविक्रय, ऋण, साझेदारी और अभिकर्तृत्व (एजेंसी) के सम्बन्धों का उल्लेख है। किंतु वर्तमान संविदा का स्वरूप उससे भिन्न है, यद्यपि उसके विकास की कड़ी उनसे भी जोड़ी जा सकती है।
 
वर्तमान संविदा की विशेषता उसकी कानूनी मान्यता है। वह प्रत्येक वचन अथवा करार जो कानून द्वारा प्रवर्तनीय हो अथवा जिसका कानून द्वारा पालन कराया जा सके, संविदा है। प्राचीन काल में इस कानूनी मान्यता पर विशेष बल नहीं था बल्कि बल था उसकी औपचारिकाताओं में से यदि कोई औपचारिकता कम रह जाती थी तो संविदा पूर्ण नहीं होती थी।
 
== भारत में संविदा ==
यद्यपि अपने विभिन्न रूपों में संविदा का प्रचलन समाज के व्यावसायिक सम्बन्धों में था परन्तु "संविदा" शब्द का अन्वेषण बहुत बाद में हुआ। संविदा शब्द बहुत व्यापक है। संविदा के ही अंग विक्रय, ऋण, बंधकबन्धक, निक्षेप (Bailment), साझेदारी, अभिकर्तृत्व (Agency), विवाह आदि भी हैं। परंतु अपने वर्तमान रूप में संविदा ने नया कानूनी अर्थ ग्रहण कर लिया है। भारतवर्ष में इसका अधिनियम सन् 1872 ई. में बना और संविदाओं का नियमन उसी [[भारतीय संविदा अधिनियम]] (Indian Contract Act 1872) द्वारा होता है। इसलिये भारतीय न्यायालय अब संविदा के मामले में इसी लिखित कानून का अनुसरण करने को बाध्य हैं। व्यवस्थाओं की व्याख्या के लिये उन्हें इसी अधिनियम का अध्ययन करके उपयुक्त अर्थ और मंतव्य निकालना चाहिए। [[भारतीय संविदा अधिनियम]] ब्रिटिश संविदा कानून पर आधारित है परन्तु ब्रिटिश संविदा अधिनियम की सहायता तभी ली जा सकती है जब या तो भारतीय संविदा अधिनियम किसी प्रश्न पर मौन हो अथवा उसकी व्यवस्था अस्पष्ट हो और ब्रिटिश कानून भारतीय अवस्था और सामाजिक स्थिति से असंगत न हो।
 
== संविदा के आवश्यक तत्व ==
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==== प्रस्ताव और उसके प्रकार ====
उपर्युक्त कथन से स्पष्ट है कि प्रस्ताव ही स्वीकृति के उपरांतउपरान्त करार बनता है। प्रस्ताव विभिन्न प्रकार के होते हैं परन्तु साधारणत: उनका वर्गीकरण पाँच श्रेणियों में किया गया है :
1. '''विशिष्ट प्रस्ताव''' (specific offer), जब कोई प्रस्ताव निश्चित व्यक्ति या व्यक्तियों से किया जाता है, तब उसे विशिष्ट प्रस्ताव कहते हैं। चूँकि प्रस्ताव निश्चित व्यक्ति या व्यक्तियों से किया जाता है, अत: इसमें स्वीकार करनेवाला व्यक्ति, जिसे स्वीकर्ता कहा जाएगा, निर्दिष्ट होता है। इसमें स्वीकृति की सूचना स्वीकर्ता द्वारा प्रस्तावक को देना आवश्यक है।
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4. '''सांकेतिक प्रस्ताव''' (इंप्लाइड ऑफर) ये प्रस्ताव शब्दों द्वारा न होकर कार्य द्वारा किए जाते हैं। यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान को टिकट के बदले ले जाने का प्रस्ताव, रेलगाड़ी को स्टेशन पर आना ही है। यह सामान्य प्रस्ताव का भी उदारहण है क्योंकि इसका स्वीकर्ता पूर्वनिश्चित नहीं है।
 
5. '''अनवरत प्रस्ताव''' (Continuous offer) इस प्रस्ताव में निश्चित दर से 5000 मन गेहूँ की आपूर्ति का प्रस्ताव। इस प्रस्ताव की स्वीकृति के उपरांतउपरान्त भी एक पक्ष तुरंत ही सम्पूर्ण गेहूँ खरीदने को या दूसरा पक्ष बेचने को बाध्य नहीं किया जा सकता ।
 
==== स्वीकृति और उसके विभिन्न प्रकार ====
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स्वीकृति भी स्पष्ट अर्थात् शब्दों द्वारा हो सकती है अथवा सांकेतिक रूप में कार्य द्वारा। टिकट लेकर गंतव्य स्थान को जानेवाली रेलगाड़ी पर यात्री का बैठना ही कार्य द्वारा कम्पनी के प्रस्ताव की स्वीकृति है। केवल मानसिक स्वीकृति मात्र स्वीकृति नहीं समझी जा सकती। शब्दों में अथवा कार्य द्वारा उसकी अभिव्यक्ति भी आवश्यक है।
 
प्रस्ताव में निर्दिष्ट कार्यों का करना भी कतिपय (साधारणत: उपर्युक्त सामान्य) प्रस्तावों की स्वीकृति मानी जाती है। परन्तु यह आवश्यक है कि स्वीकर्ता इस कार्य को करने के पूर्व से ही प्रस्तावक की शर्ते जानता हो। यदि स्वीकर्ता प्रस्ताव की बिना जानकारी के ही वह कार्य करता है जो प्रस्ताव में निर्दिष्ट है, तो वह प्रस्ताव की स्वीकृति नहीं माना जा सकता। एक व्यक्ति गोरीदत्त ने अपने भतीजे की खोज के लिए अपने मुनीम लालमन को भेजा। लालमन के जाने के उपरांतउपरान्त गौरीदत्त ने अपने भतीजे को खोज लानेवाले के लिए 501 रूपए पुरस्कार की घोषणा की। लालमन मुनीम गौरीदत्त के भतीजे को खोज लाया और पुरस्कार की माँग की। निर्णय यह हुआ कि चूँकि लालमन को लड़के की खोज के पूर्व पुरस्कार की शर्त की सूचना नहीं थी, न पुरस्कार प्राप्ति की बात ही ज्ञात थी, अत: खोए हुए लड़के को खोज लाने का लालमन का कार्य गौरीदत्त के प्रस्ताव की स्वीकृति नहीं माना जा सकता (लालमन शुक्ल बनाम गौरीदत्त)
 
प्रस्ताव से उत्पन्न लाभ को स्वीकार करना भी उपयुक्त दशाओं में प्रस्ताव की स्वीकृति समझी जाती है। वाराणसी से प्रयाग की बस में बैठकर जाना ही बस मालिक के प्रस्ताव की स्वीकृति है और स्वीकर्ता बस का किराया देने को बाध्य है।
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===== '''भ्रांति''' =====
करार के सम्बनध में विचार करते हुए यह कहा गया है कि उभय पक्ष के बीच मानसिक मतैक्य का होना आवश्यक है। भ्रांति इसी से सम्बन्धित दोष है। इसमें एक पक्ष एक वस्तु या बात और दूसरा पक्ष दूसरी वस्तु या बात समझता है। फलस्वरूप ऊपरी ढंग से देखने में तो संविदा का निर्माण प्रतीत होता है परन्तु भ्रांति के कारण वस्तुत: कोई संविदा होती नहीं है। ये भ्रांतियाँ कई प्रकार की होतीहोतीं हैं। विषयसामग्री के सम्बन्ध में भ्रांति का उदाहरण पूर्वप्रसंग में शेवरलेट और फोर्ड मोटर कारों के द्वारा दिया गया है। इसी प्रकार संविदा के पक्ष की पहचान में भी भ्रांति सम्भव है। "क" ने जिसे "ख" समझकर संविदा की यदि वह वस्तुत: "ख" नहीं वरन् "ग" था तो यह पक्ष की पहचान की भ्रांति है। संविदा की प्रकृति या अर्थ सम्बन्धी भी भ्रांति हो सकती है। अगर किसी बाद का एक पक्ष बाद में अवसर लेने का आवेदन पत्र बताकर किसी सन्धिपत्र पर दूसरे पक्ष का हस्ताक्षर करा लेता है तो दूसरे पक्ष को संविदा के रूप या प्रकृति के विषय में भ्रांति होती है। ऐसी दशा में हस्ताक्षर बनानेवाले का मस्तिष्क उसके हस्ताक्षर के साथ नहीं है।
 
==== प्रतिफल एवं उद्देश्य वैध होना चाहिए ====
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3. जो प्रतिफल कपटपूर्ण होते हैं, वे अवैध समझे जाते हैं।
 
4. वह प्रतिफल जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के शरीर या सम्पत्ति को हानि पहुँचती हो अवैध होता है। उदाहरण के लिये अ एक समाचारपत्र के संपादकसम्पादक को पाँच सौ रूपया देने का वचन देता है यदि संपादकसम्पादक ब के सम्बन्ध में अपमानजनक विवरण छापे। यहाँ प्रतिफल अवैध है क्योंकि इससे ब की प्रतिष्ठा पर आघात पहुँचता है।
 
5. ऐसे प्रतिफल जो अनैतिक होते हैं, अवैध हैं।
 
6. लोकनीति के विरुद्ध प्रतिफल अवैध होते हैं, जैसे शत्रु के साथ व्यापार करना। लोकसेवा को हानि पहुँचाने की प्रवृत्ति रखनेवाली संविदा, दंडनीय अपराधों से सम्बन्धित मुकदमों का गला घोटनेवाली संविदा नि:सत्व होती है। वैधानिक कार्रवाई का दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति रखनेवाली संविदा, ऐसी संविदा जौ नैतिकता के विरुद्ध हो, या व्यापारनिरोधक संविदा या किसी जो नैतिकता के विरुद्ध हो, या व्यापारनिरोधक संविदा या किसी व्यवस्क व्यक्ति को शादी करने से रोकने के लिए संविदा, इत्यादि भी लोकनीति के विरुद्ध एवं नि:सत्व होतीहोतीं हैं।
 
उद्देश्य एवं प्रतिफल में से एक का भी अवैध होना संविदा को नि:सत्व कर देता है। यदि संविदा का उद्देश्य अंशत: अवैध हो तब भी संविदा नि:सत्व हो जाती है, यदि उसके अवैध अंश को वैध अंश से पृथक् न किया जा सके। यदि प्रतिफल या उद्देश्य का अवैध अंश वैध अंश से अलग किया जा सके तो वैध अंश प्रवर्तनीय होगा और अवैध अंश नि:सत्व होगा। जैसे "ब" ने "अ" को एक प्रतिज्ञापात्र द्वारा 2000 रुपए देने का वचन दिया जिनमें से 1500 रुपए पुराना ऋण था और 500 रुपए जुए में हारी रकम थी। इसमें वैध भाग का अवैध भाग से पृथक् किया जा सकता है; अतएव यह प्रतिज्ञापत्र 1500 रुपए के लिये मान्य होगा किन्तु 500) के लिये नि:सत्व होगा।
 
==== नि:सत्व घोषित न होना ====
भारतीय संविदा अधिनियम के अंतर्गतअन्तर्गत नि:सत्व घोषित करार कानून द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हो सकते, यद्यपि उसमें संविदा के अन्य तत्व पूर्णत: विद्यमान भी हों। इस कोटि मेमें निम्नांकित करार आते हैं :
 
१) त्रुटि या भ्रांति द्वारा प्रभावित करार;
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== वाह्य सूत्र ==
* [http://bharat.gov.in/business/manage_business/contract_law.php संविदा प्रविधि] (कान्ट्रैक्ट ला)
* [http://teesarakhamba.blogspot.com/2008/06/blog-post_24.html प्रस्ताव, स्वीकृति, प्रतिफल, अनुबंधअनुबन्ध और कॉन्ट्रेक्ट] (तीसरा खम्भा)
* [http://moodle.ed.uiuc.edu/wiked/index.php/Behavioral_contracting Behavioral Contracting in the Classroom]
* [http://www.legalmax.info Contract Law Lessons & Materials by Max Young]