"हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन": अवतरणों में अंतर
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एच०आर०ए० की ओर से १ जनवरी १९२५ को गुमनाम '''क्रान्तिकारी पार्टी''' के नाम से चार पृष्ठ का एक इश्तहार २८ से ३१ जनवरी १९२५ के बीच [[हिन्दुस्तान]] के सभी प्रमुख स्थानों पर वितरित किया गया। यह इस दल का खुला घोषणा-पत्र था जो जानबूझ कर अंग्रेज़ी में '''दि रिवोल्यूशनरी''' के नाम से छापा गया था ताकि अंग्रेज़ भी इसे समझ सकें। इसमें विजय कुमार के छद्म नाम से एच०आर०ए० की विचार-धारा का खुलासा करते हुए साफ़ शब्दों में घोषित किया गया था कि क्रान्तिकारी इस देश की शासन व्यवस्था में किस प्रकार का बदलाव करना चाहते हैं और इसके लिये वे क्या-क्या कर सकते हैं। इस पत्र में [[गांधी|गान्धी जी]] की नीतियों का मजाक बनाते हुए यह प्रश्न भी उछाला था कि "यह व्यक्ति स्वयं को तो आध्यात्मिक बताता है पर अंग्रेज़ों से खुलकर बात करने में इसकी हवा निकलती है। इसका रहस्य क्या है?" घोषणा-पत्र में हिन्दुस्तान के सभी नौजवानों को "ऐसे छद्मवेषी महात्मा" के बहकावे में न आने की सलाह भी दी गयी थी। इसके अतिरिक्त सभी नवयुवकों से इस गुप्त क्रान्तिकारी पार्टी में शामिल हो कर अंग्रेज़ों से दो-दो हाथ करने का खुला आवाहन भी किया गया था। ''दि रिवोल्यूशनरी'' के नाम से अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस घोषणापत्र में क्रान्तिकारियों के वैचारिक चिन्तन<ref>''सरफरोशी की तमन्ना'' ( भाग-एक) पृष्ठ १७० से १७४ तक</ref> को भली-भाँति समझा जा सकता है।
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{{मुख्य|काकोरी काण्ड}}
[[File:Accused of Kakori Case 1925.jpg|thumb|right|200px|काकोरी-काण्ड के क्रान्तिकारी<br/> <small>सबसे ऊपर [[राम प्रसाद 'बिस्मिल']] एवं [[अशफाक उल्ला खाँ]] नीचे ग्रुप फोटो में क्रमश: 1.योगेशचन्द्र चटर्जी, 2.प्रेमकृष्ण खन्ना, 3.मुकुन्दी लाल, 4.विष्णुशरण दुब्लिश, 5.सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य, 6.रामकृष्ण खत्री, 7.मन्मथनाथ गुप्त, 8.राजकुमार सिन्हा, 9.ठाकुर रोशानसिंह, 10.पं० रामप्रसाद 'बिस्मिल', 11.राजेन्द्रनाथ लाहिडी, 12.गोविन्दचरण कार, 13.रामदुलारे त्रिवेदी, 14.रामनाथ पाण्डेय, 15.शचीन्द्रनाथ सान्याल, 16.भूपेन्द्रनाथ सान्याल, 17.प्रणवेशकुमार चटर्जी</small>]]
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इन दोनों नेताओं के गिरफ़्तार हो जाने से बिस्मिल के कन्धों पर पूरी पार्टी का उत्तरदायित्व आ गया। पार्टी के कार्य हेतु धन की आवश्यकता तो पहले से ही थी किन्तु अब और बढ़ गयी थी। कहीं से भी धन प्राप्त होता न देख ७ मार्च १९२५ को [[बिचपुरी]] तथा २४ मई १९२५ को द्वारकापुर में दो डकैतियाँ डालीं परन्तु उनमें कुछ विशेष धन हाथ न आया। उल्टे इन दोनों डकैतियों में एक-एक व्यक्ति भी मौके पर मारा गया। आखिरकार उन्होंने यह निश्चय किया कि अब केवल सरकारी खजाना लूटेंगे।
अन्ततोगत्वा [[शाहजहाँपुर]] में बिस्मिल के घर पर हुई एक आपातकालीन बैठक में अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनी। इस योजनानुसार ९ अगस्त १९२५ को [[लखनऊ]] जिले के [[काकोरी]] रेलवे स्टेशन के आगे '''आठ डाउन [[सहारनपुर]]-[[लखनऊ]] पैसेन्जर ट्रेन''' को चेन खींच कर रोक लिया और उसमें रखा हुआ सरकारी खजाना लूट कर सभी
इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने
==दल का पुनर्गठन==
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