"गंगा प्रदूषण नियंत्रण": अवतरणों में अंतर

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१९८५ के अप्रैल में गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत हुई और बीस सालों में इस पर १२०० करोड़ रुपये खर्च हुए।<ref>{{cite web |url=http://www.bhaskar.com/business/article.php?id=17176|title=आने वाले समय में मैली नहीं रहेगी राम की गंगा
|accessmonthday=[[३० जून]]|accessyear=[[२००९]]|format=|publisher=देनिक भास्कर|language=}}</ref> इस योजना की बदौलत गंगा के किनारे बसे शहरों और कारख़ानों में गंदे और जहरीले पानी को साफ़ करने के प्लांट लगाए गए। इनसे गंगा के पानी में थोड़ा सुधार ज़रूर हुआ लेकिन गंगा में गंदगी का गिरना बदस्तूर जारी रहा। अंत में यह समझा गया कि गंगा एक्शन प्लान असफल हो गाया। इस प्लान की सबसे बड़ी ख़ामी शायद ये थी कि उसमें गंगा के बहाव को बढ़ाने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। गंगा में ग्लेशियरों और झरनों से आने वाले पानी को तो कानपुर से पहले ही नहरों में निकाल लिया जाता है। ज़मीन का पानी गंगा की धारा बनाए रखता था लेकिन नंगे पहाड़ों से कट कर आने वाली मिट्टी ने गंगा की गहराई कम करके अब इस स्रोत को भी बंद कर दिया है। बनारस के 'स्वच्छ गंगा अभियान' के संचालक प्रोफ़ेसर वीरभद्र मिश्र इस बारे में चिंतित हैं और बताते हैं कि गंगा पर कितना दबाव है। उन्होंने कहा कि गंगा दुनिया की एकमात्र नदी है जिस पर चालीस करोड़ लोगों का अस्तित्व निर्भर है। इसलिए उस पर दबाव भी ज़्यादा है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि गंगा को बचाने के लिए सबसे पहले हिमालय के ग्लेशियरों को बचाना होगा।
 
==ब्रह्म-द्रव ‘गंगा’ का पराभव!==
-देवेश शास्त्री-
भ्रष्टाचार मुक्त भारत की संकल्पना की ही तर्ज पर ब्रह्म-द्रव गंगा को प्रदूषणमुक्त करने के लिए वर्षों से अकूत संपदा एक्शन प्लान के रूप में बहाया जाता रहा है, नतीजा सिफर। गंगा ही नहीं, सभी नदियों की बदहाली है। लीलापुरुषोत्तम श्रीकृष्ण का कालिया मर्दन प्रसंग ही एकमात्र ऐसा एक्शन प्लान है जो जहरीले नद-जगत् को विष हीन अर्थात् प्रदूषण मुक्त कर सकता है। कालिया नाग प्रदूषण का प्रतीक है, जिसके असंख्य फन नाले, नालियों, सीवर लाइनें, फैक्ट्रियों की विषाक्त गंदगी आदि के प्रतीक हैं। इन फनों को कुचलने का तात्पर्य है विषाक्त स्रोतों को रोक देना। सवाल उठता है कि जब नाले नालियां जाम कर दी जायेंगी तो गंदा पानी घरों में जायेगा। हालात खराब होंगे। नहीं, समस्या जब पैदा होती है तब समाधान का रास्ता ढूंढा जाता है। पानी घरों में भरेगा तो जल शुष्क संयंत्र यानी शोख्ते बनेंगे।
 
==स्वच्छ गंगा अभियान==