"सबाल्टर्न अध्ययन": अवतरणों में अंतर

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=== कल्पित समुदाय ===
प्रसिद्ध सबाल्टर्न अध्ययेता [[रंजीत गुहा]], [[पार्थ चटर्जी]] आदि ने भारत में राष्ट्र की अवधारणा को भ्रामक [[प्रत्यय]] माना। उनकी यह धारणा [[बेनेडिक्ट ऐंडरसन]] की [[कल्पित समुदाय]] की अवधारणा से प्रभावित है।<ref>Imagined Communities, Benedict Anderson, Verso, 2003,page- 5-6</ref>। पार्थ चटर्जी ने माना है कि भारत का एक अखण्ड इतिहास लिखने की जगह उसके खण्डों, टुकड़ों का इतिहास लिखा जाना चाहिए।<ref>The Nation and its Fragments, Partha Chatterjee, OUP, 1994, page- 113</ref> सबाल्टर्न अध्ययन के अंतर्गत राष्ट्र और [[जातियता|जाति]] को ‘कल्पित समुदाय’ मानने के पीछे एक अन्य कारण है [[भारत में
=== किसान विद्रोह|भारत में किसान विद्रोहों]] का इतिहास।नेतृत्व ===
किसान प्रश्न पर गुहा ने घोषित किया कि, किसान इतिहास की विषयवस्तु नहीं, स्वयं अपने इतिहास के कर्ता हैं।<ref>Elementary Aspect of Peasant Insurgency in Colonial India, Ranjit Guha, OUP, 1983, page- 13</ref> गुहा तथा पार्थ चटर्जी जैसे उनके सहयोगियों ने किसानों के विद्रोहों को ‘विशुद्ध चेतना’ से अनुप्राणित माना। इसी ‘विशुद्ध चेतना’ के मुहावरे में उन्होंने किसानों को व्यापक राष्ट्रीय आंदोलनों की मुख्यधारा से अलगाया।

स्त्री प्रश्न पर भी सबाल्टर्न इतिहासकार एक मत हैं कि राष्ट्र में स्त्रियों की अपनी एक स्वतंत्र सामुदायिक अस्मिता है। पार्थ चटर्जी ‘राष्ट्र और उसकी महिलाएँ’ में व्यक्त स्थापनाओं द्वारा घोषित करते हैं कि, राष्ट्र के इतिहास के अंतर्गत स्त्रियों का इतिहास लिखा जाना उनके साथ विश्वासघात है।<ref>The Nation and its Fragments, Partha Chatterjee, OUP, 1994, page, page- 136</ref>
 
== प्रमुख सबाल्टर्न इतिहासकार==