"सौन्दर्य प्रसाधन": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
छो →इतिहास |
||
पंक्ति 13:
[[सभ्यता]] के प्रादुर्भाव से ही मनुष्य स्वभावत: अपने शरीर के अंगों को शुद्ध, स्वस्थ, सुडौल और सुंदर तथा त्वचा को सुकोमल, मृदु, दीप्तिमान और कांतियुक्त रखने के लिए सतत प्रयत्नशील रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि शारीरिक स्वास्थ्य और सौंदर्य प्राय: मनुष्य के आंतरिक स्वास्थ्य और मानसिक शुद्धि पर निर्भर है। तथापि, यह सत्य है कि किसी के व्यक्तित्व को आकर्षक और सर्वप्रिय बनाने में अंगराग और सुगंध विशेष रूप से सहायक होते हैं। संसार के विभिन्न देशों के साहित्य और सांस्कृतिक इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि भिन्न-भिन्न अवसरों पर प्रगतिशील नागरिकों द्वारा अंगराग और गंध शास्त्र संबंधी कलाओं का उपयोग शारीरिक स्वास्थ्य और त्वचा की सौंदर्य वृद्धि के लिए किया जाता रहा है।
[[भारत]]
गंगाधरकृत [[गंधसार]] नामक ग्रंथ के अनुसार तत्कालीन भारत में अंगरागों के निर्माण में मुख्यतया निम्नलिखित छह प्रकार की विधियों का प्रयोग किया जाता था।
|