"कपूर": अवतरणों में अंतर

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{{PAGENAME}} एक [[कार्बनिक यौगिक]] है। यह सफेद रंग का मोम की तरह का पदार्थ है। इसमे एक तीखी गंध होती है।
'''कपूर''' ([[संस्कृत]] : कर्पूर) उड़नशील वानस्पतिक द्रव्य है। यह सफेद रंग का मोम की तरह का पदार्थ है। इसमे एक तीखी गंध होती है। कपूर को संस्कृत में कर्पूर, [[फारसी]] में काफ़ूर और [[अंग्रेजी]] में कैंफ़र कहते हैं।
। [[कार्बन]] के [[रासायनिक यौगिक|रासायनिक यौगिकों]] को '''कार्बनिक यौगिक''' कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ [[हाइड्रोजन]] भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें [[कार्बनडाइऑक्साइड]], [[कार्बन मोनोऑक्साइड]] प्रमुख हैं। सभी [[जैव अणु]] जैसे [[कार्बोहाइड्रेट]], [[अमीनो अम्ल]], [[प्रोटीन]], [[आरएनए]] तथा [[डीएनए]] कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH<sub>4</sub>) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C<sub>2</sub>H<sub>6</sub>), प्रोपेन (C<sub>3</sub>H<sub>8</sub>) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (=) है, ऐसीटिलीन में त्रिगुण बंध (º) वाले यौगिक अस्थायी हैं। ये आसानी से ऑक्सीकृत एवं हैलोजनीकृत हो सकते हैं। हाइड्रोकार्बनों के बहुत से व्युत्पन्न तैयार किए जा सकते हैं, जिनके विविध उपयोग हैं। ऐसे व्युत्पन्न क्लोराइड, ब्रोमाइड, आयोडाइड, ऐल्कोहाल, सोडियम ऐल्कॉक्साइड, ऐमिन, मरकैप्टन, नाइट्रेट, नाइट्राइट, नाइट्राइट, हाइड्रोजन फास्फेट तथा हाइड्रोजन सल्फेट हैं। असतृप्त हाइड्रोकार्बन अधिक सक्रिय होता है और अनेक अभिकारकों से संयुक्त हा सरलता से व्युत्पन्न बनाता है। ऐसे अनेक व्युत्पंन औद्योगिक दृष्टि से बड़े महत्व के सिद्ध हुए हैं। इनसे अनेक बहुमूल्य विलायक, प्लास्टिक, कृमिनाशक ओषधियाँ आदि प्राप्त हुई हैं। हाइड्रोकार्बनों के ऑक्सीकरण से ऐल्कोहॉल ईथर, कीटोन, ऐल्डीहाइड, वसा अम्ल, एस्टर आदि प्राप्त होते हैं। ऐल्कोहॉल प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक हो सकते हैं। इनके एस्टर द्रव सुगंधित होते हैं। अनेक सुगंधित द्रव्य इनसे तैयार किए जा सकते हैं। इसी प्रकार {{PAGENAME}} को भी विभिन्न प्रयोगों में लिया जा सकता है।
 
कपूर उत्तम [[वातहर]], [[दीपक]] और [[पूतिहर]] होता है। [[त्वचा]] और [[फुफ्फुस]] के द्वारा उत्सर्जित होने के कारण यह स्वेदजनक और कफघ्न होता है। न्यूनाधिक मात्रा में इसकी क्रिया भिन्न-भिन्न होती है। साधारण औषधीय मात्रा में इससे प्रारंभ में सर्वाधिक उत्तेजन, विशेषत: हृदय, श्वसन तथा मस्तिष्क, में होता है। पीछे उसके अवसादन, वेदनास्थापन और संकोच-विकास-प्रतिबंधक गुण देखने में आते हैं। अधिक मात्रा में यह दाहजनक और मादक [[विष]] हो जाता है।
 
==प्रकार==
कपूर तीन विभिन्न वर्गों की वनस्पति से प्राप्त होता है। इसीलिए यह तीन प्रकार का होता है :
 
(1) चीनी अथवा जापानी कपूर,
 
(2) भीमसेनी अथवा बरास कपूर,
 
(3) हिंदुस्तानी अथवा पत्रीकपूर।
 
उपर्युक्त तीनों प्रकार के कपूर के अतिरिक्त आजकल संश्लिष्ट (synthesized) कपूर भी तैयार किया जाता है।
 
===जापानी कपूर===
यह एक वृक्ष से प्राप्त किया जाता है जिससे सिनामोमस कैफ़ोरा (Cinnamomum camphora) कहते हैं। यह लॉरेसी (Lauraceae) कुल का सदस्य है। यह वृक्ष चीन, जापान तथा फ़ारमोसा का आदि निवासी है, परंतु कपूर के उत्पादन के लिए अथवा बागों की शोभा के लिए अन्य देशों में भी उगाया जाता है। भारत में यह देहरादून, सहारनपुर, नीलगिरि तथा मैसूर आदि में पैदा किया जाता है। भारतीय कर्पूर वृक्ष छोटे, उनकी पत्तियाँ ढाई से 4 इंच लंबी, आधार से कुछ ऊपर तीन मुख्य शिराओं से युक्त, आधारपृष्ठ पर किंचित्‌ श्वेताभ, लंबाग्र और मसलने पर कर्पूरतुल्य गंधवाली होती हैं। पुष्प श्वेताभ, सौरभयुक्त और सशाख मंजरियों में निकलते हैं।
 
जापानी कपूर- जापान आदि में लगभग 50 वर्ष पुराने वृक्षों के काष्ठ आसवन (distillation) से कपूर प्राप्त किया जाता है। किंतु भारत में यह पत्तियों से ही प्राप्त किया जाता है। कपूर के पौधों से बार-बार पत्तियाँ तोड़ी जाती हैं, इसलिए वे झाड़ियों के रूप में ही बने रहते हैं। इस जाति के कई भेद ऐसे भी हैं जो साधारण दृष्टि से देखने पर सर्वथा समान लगते हैं, परंतु इनमें कपूर से भिन्न केवल यूकालिप्टस आदि गंधवाले तेल होते हैं, जिनका आभास मसली हुई पत्तियों की गंध से मिल जाता है। कपूरयुक्त भेदों के सर्वांग में तेलयुक्त केशिकाएँ होती हैं जिनमें पीले रंग का तेल उत्पन्न होता है। इससे धीरे-धीरे पूथक्‌ होकर कपूर जमा होता है।
 
===भीमसेनी कपूर===
जिस पौधे से यह प्राप्त होता है उसे [[ड्रायोबैलानॉप्स ऐरोमैटिका]] (Dryobalanops aromatica) कहते हैं। यह डिप्टरोकार्पेसिई (Deipterocarpaceae) कुल का सदस्य है जो [[सुमात्रा]] तथा [[बोर्निओ]] आदि में स्वत: उत्पन्न होता है। इस वृक्ष के काष्ठ में जहाँ पाले होते हैं अथवा चीरे पड़े रहते हैं वहीं कपूर पाया जाता है। यह श्वेत एवं अर्धपारदर्शक टुकड़ों में विद्यमान रहता है और खुरचकर काष्ठ से निकाला जाता है। इसलिए इसे अपक्व और जापानी कपूर को पक्व कर्पूर कहा गया हे। यह अनेक बातों में जापानी कपूर से सादृश्य रखता है और उसी के समान चिकित्सा तथा गंधी व्यवसाय में इसका उपयोग होता है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि यह पानी में डालने पर नीचे बैठ जाता है। आयुर्वेदीय चिकित्सा में यह अधिक गुणवान भी माना गया है। आजकल भीमसेनी कपूर के नाम पर बाजार में प्राय: कृत्रिम कपूर ही मिलता है, अत: जापानी कपूर का उपयोग ही श्रेयस्कर है।
 
===पत्री कपूर===
[[भारत]] में कंपोज़िटी (Compositae) कुल की [[कुकरौंधा]] प्रजातियों (Blumea species) से प्राप्त किया जाता है, जो पर्णप्रधान शाक जाति की वनस्पतियाँ होती हैं।
 
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"https://hi.wikipedia.org/wiki/कपूर" से प्राप्त