"चिकनगुनिया": अवतरणों में अंतर

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== कारण ==
[[चित्र:Aedes aegypti biting human.jpg|thumb|200px|''[[एडीज़ इजिप्टी]]'' मच्छर, मानव मांस पर काटते हुए।]]
इस रोग को शरीर मे आने के बाद २ से ४ दिन का समय फैलने मे लगता है, रोग के लक्षणों मे 39डिग्री [102.2 फा] तक का [[ज्वर]], धड और फिर हाथों पैरों पे चकते बन जाना, शरीर के विभिन्न जोडॉं मे पीडा होना शामिल है इसके अलावा सिरदर्द, प्रकाश से भय लगना,आखों मे पीडा शामिल है। ज्वर आम तौर पर दो से ज्यादा दिन नहीं चलता है तथा अचानक समाप्त होता है ,लेकिन अन्य लक्षण जिनमें [[अनिद्रा]] तथा निर्बलता भी शामिल है आम तौर पर 5 से 7 दिन तक चलतें है रोगियों को लम्बे समय तक जोडों की पीडा हो सकती जो उनकी उम्र पर निर्भर करती है।
मूल रूप से यह रोग [[उष्णकटिबंधीय]] [[अफ्रीका]] तथा [[एशिया]] मे पनपता है जहाँ यह रोग एडिस प्रजाति के मच्छर मानवों मे फैलाते है। यह रोग मानव- मच्छर- मानव के चक्र मे फैलता है . चिकनगुनिया शब्द की उतपत्ति स्थानीय भाषा से हुई है क्योंकि इस रोग का रोगी दर्द से दुहरा हो जाता है क्योंकि उसके जोडों मे भयानक दर्द होता है। मकोंडे भाषा में चिकनगुनिया का अर्थ होता ही है वो जो दुहरा कर दे। इस रोग के विषाणु मुख्य रूप से बन्दर मे पायें जाते है ,किंतु मानव सहित अन्य प्रजाति भी इस से प्रभावित हो सकती है।
 
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इस रोग का कोई उपचार नहीं है,ना ही इसके विरूद्ध कोई टीका मिलता है. सिर्फ एक अनुसंधान जिसे अमेरिकी सरकार से पैसा मिला है जो चल रहा है।
चिकनगुनिया के विरूद्ध एक [[सीरोलोजिकल परीक्षण]] उपलब्ध है जिसे [[मलाया विश्वविधालय]] कुआलालापुंर मलेशिया ने विकसित किया है ।
[[क्लोरोक्वीन]] इस रोग के लक्षणों के विरूद्ध प्रभावी औषधि सिद्ध हो रही है इसका प्रयोग एक [[एण्टीवायरल]] एजेंट के रूप मे हो सकता है .पीडा की दशा जो [[गठिया]] के समान होती है तथा जो [[एस्परीन]] से समाप्त नही की जा सकती है को [[क्लोरोक्वीन फास्फेट]]की खुराक से सही किया जा सकता है मलाया विश्वविधालय के इस अध्ययन की पुष्टि इटली तथा फ्रांस सरकार के रिपोर्ट भी करते है.इस रोग के आंकडें बताते है कि [[एस्परीन]],[[इबूफ्रिन]]तथा[[नैप्रोक्सीन]] जैसी औषधिया असफल रहती हैहै। .रोगी यदि हल्की फुल्की कसरत करे तो उसे लाभ मिलता है है। किंतु भारी कसरत से पीडा बढ जाती है अस्थि पीडा 8 मास बाद तक बनी रहती है, [[केरल]] में लोगों द्वारा शहद-चूना मिश्रण प्रयोग किया है कुछ लोगों को कम मात्रा मे हल्दी प्रयोग से भी लाभ होता देखा गया है।
 
== पूर्वानुमान ==
इस रोग से रोगी का ठीक होना उसकी उम्र पर निर्भर करता है जवान लोग 5 से 15 दिन में,मध्य आयु वाले 1 से 2.5 मास में तथा बुजुर्ग और भी ज्यादा समय लेते है , गर्भवती महिला पे भारी दुष्प्रभाव नहीं देखें गये है।
इस रोग से नेत्र संक्रमण भी हो सकता है।
पैरों की सूजन भी देखी जाती है जिसका कारण दिल,गुर्दे तथा यकृत रोग से नहीं होता है ।
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== इतिहास ==
इस रोग का नाम मकोंडे भाषा से लिया गया है वहाँ इसका अर्थ है जो दूहरा कर दे क्योंकि रोगी को भारी पीडा होती है इस रोग को पहली बार मेरोन रोबिंसन[31] तथा लुम्स्डेन[32] ने वर्णित किया था था।
यह पहली बार तंजानिया मे फैला था।