"जल इंजीनियरी": अवतरणों में अंतर

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== उपयोग ==
[[चित्र:Mh zweiwegebagger.jpeg|right|thumb|300px|सड़क और रेल दोनो पर चल सकने वाली गाड़ी, जिसमें जल इंजीनियरी का भरपूर उपयोग हुआ है।]]
पानी के बहाव में घर्षण द्वारा बहुत से दबाव का क्षय (friction loss) होता है। इसी कारण बहुधा ऊँचे या दूरी पर स्थित स्थलों पर जलप्रदाय साधनों में पानी अनुकूल दबाव से नहीं निकल पाता। वैसे खुली नहरों में भी घर्षण द्वारा दबाव का क्षय होता है। जल इंजीनियरी द्वारा इस प्रकार बहुत से साधन प्रस्तुत किए जाते हैं कि दबाव का क्षय कम से कम हो। इसलिये पानी के मार्गो को पक्का या चिकना करने के साधन उपयोग में लाए जाते हैं। नालिकाओं में जहाँ जोड़ या मोड़ आते हैं अथवा नालिका जहाँ बड़ी से छोटी होती है वहाँ दबाव का क्षय होता है। दबाव के इस क्षय का अनुमान [[बर्नुली के समीकरण]] द्वारा किया जा सकता है।
 
बड़े-बड़े तालाबों या जलाशयों में अथवा विशेष कार्यों की पूर्ति में भूगर्भ में सर्पण द्वारा पानी का क्षय होता है। इसके लिये भी जल इंजीनियरी के सिद्धांतों द्वारा ऐसे साधन जुटाए जाते हैं जिनसे या तो सर्पण बिल्कुल बंद हो जाय अथवा संर्पण द्वारा पानी इतने ही सेग से बहे, जिससे भूमि के कण हटने न पाएँ। यदि भूमि के कण हटने लगते हैं तो परिणाम यह होता है कि अभिकल्प पर आधारित कार्य के अंदर पोल होती रहती है और कार्य की स्थिरता जोखिम में पड़ जाती है।
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इस संबंध में बहुत सा कार्य भिन्न-भिन्न देशों में हो चुका है। बिलाई द्वारा निर्धारित "सर्पण" सिद्धांत (Creep theory) पर आधारित बहुत से काम बनाए गए हैं। इस सिद्धांत का मूल यह था कि यदि संर्पण का मार्ग लंबा कर दिया जाय तो उससे निकास का वेग कम हो जायगा। इसके बाद भारतीय इंजीनियर खोसला ने एक और तथ्य घोषित किया, जिसके आधार पर बहुत से काम बनाए गए।
 
जल इंजीनियरी का महत्वपूर्ण क्षेत्र बड़े-बड़े [[बाँध]] तथा नदियों में रोक या [[बराज|बाराज]] (barrage) बनाने का है। जहाँ पानी संचित करने के लिये बांध बनते हैं, वहाँ बांधों की स्थिरता जाँचने के लिये बड़ी खोज करनी पड़ती है। साधारणत: जितना ऊँचा बाँध हो उसकी एक तिहाई तल की चौड़ाई होनी चाहिए। इसके निमित्त जा गणित-रेखा-निदान किया जाता है उसका प्रदर्शन चित्र 3. में अंकित है। यह साधारण भू-आकर्षण पर स्थित [[कंक्रीट]] (concrete) बांध का अभिकल्प है। इन अभिकल्पों में पानी के भार के अतिरिक्त लहरों का प्रभाव, भूकंप का प्रभाव, हवा का प्रभाव तथा अन्य बहुत सी बातें भी सोचनी पड़ती हैं। फिर, आजकल व्यय में बचत को ध्यान में रखते हुए ये बाँध भी विविध प्रकार से बनने लगे हैं और बाँध का निर्माण जल इंजीनियरी की विशेष शाखा बन गई है।
 
जब जल बहुत अधिक दबाव में निकलता है तब उसी कटान की क्षमता बहुत बढ़ जाती है। बड़ी बड़ी चट्टानें उसके कारण कट जाती हैं। अत: बड़े बड़े बाँधों पर अतिरिक्त जल की निकासी की समस्या बड़ी विकट होती है। उसके निकास स्थल को विशेष रूप से पक्का बनाया जाता है। कहीं कहीं तो जल में निर्मित शक्ति को व्यय करने के लिये गोलाकार तसले की सी शक्ल बनानी होती है। इस प्रकार नीचे गिरकर जल कुछ ऊपर उठता है और उसमें निर्भित शक्ति का ह्रास हो जाता है; इसके उपरांत उस जल की कटानक्षमता कम हो जाती है। अन्य बहुत से साधन जल में निर्मित शक्ति को व्यय करने के लिये उपयोग में लाए जाते हैं।