"बाउल लोक गायन": अवतरणों में अंतर

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बाउल एक प्रकार का लोक (फोक) गायन है, इसका गायन करने वाले को बंगाल में बाउल कहते है । इसी बाउल का दुसरा रुप भाट होता है जो ज्यादातर राजस्थान एवं मध्य-प्रदेश में पाये जाते है । उत्तर-प्रदेश में इसे फकीर या जोगी भी कहा जाता है। सामान्यतौर पर आउल, बाउल, फकीर , साई, दरबेस, जोगी एवं भाट बाउल के ही रुप है । इन सभी में एक समानता होती है कि ये ईश्वर की भक्ति मे इस तरह लीन होते है कि इन्हे बाउल पागल भी कहा जाता है । ऐसा माना जाता है कि इसकी शुरुवात बंगलादेश से हुई । वहाँ इसे बाउल या पागल कहा जाता है । बाउल विश्वव्यापी है यह हिन्दु-मुस्लिम कोई भी हो सकता है । बाउल का रहन-सहन, पहनावा एवं जीवन व्यतीत करने का तरीका वैश्णव धर्म के बहुत करीब होता है । ज्यादातर बाउल वैश्णव धर्म का पालन करते है वैश्णव धर्म में पुरुष वैश्णव एवं स्त्री को वैश्ण्वी कहते है ।
 
==विशेषता==
 
बाउल एक ऐसा गायक होता है जो कभी भी अपना जीवन एक-दो दिन से ज्यादा एक स्थान पर व्यतीत नही करता है । यह गाँव-गाँव जाकर भगवान विष्णु के भजन एवं लोक गीत गाकर भिक्षा मागं कर अपना जीवनयापन करते है । लेकिन यह जरुरी नही कि हर वैश्णवी बाउल गाकर भिक्षा मांगे परन्तु बाउल (आउल, फकीर, साई, दरबेस, जोगी एवं भाट) गाकर ही भिक्षा मागंता है । वैश्णवी विष्णु के पुजारी होते है । वैष्णवी खंजनी, करताल (जिसे आजकल खडताल भी कहते है) एवं खौल बजाकर भिक्षा मागंते है ।