"बाउल लोक गायन": अवतरणों में अंतर

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[[File:Arun Patua is palying Shrikhol or Mrudung.jpg|thumb|अरुण पटुआ श्रीखोल या मृदंग बजाते हुए]]
[[File:Gubgubi.jpg|thumb|गुबगुबी]]
 
बाउल एक ऐसा गायक होता है जो कभी भी अपना जीवन एक-दो दिन से ज्यादा एक स्थान पर व्यतीत नही करता है । यह गाँव-गाँव जाकर भगवान विष्णु के भजन एवं लोक गीत गाकर भिक्षा मागं कर अपना जीवनयापन करते है । लेकिन यह जरुरी नही कि हर वैश्णवी बाउल गाकर भिक्षा मांगे परन्तु बाउल (आउल, फकीर, साई, दरबेस, जोगी एवं भाट) गाकर ही भिक्षा मागंता है । वैश्णवी विष्णु के पुजारी होते है । वैष्णवी खंजनी, करताल (जिसे आजकल खडताल भी कहते है) एवं खौल बजाकर भिक्षा मागंते है । वैष्णवी बाउल के परिधान सफेद होते है वह सफेद लुंगी, कुर्ता, एवं पगड़ी पहनते है । ऐसा माना जाता है कि बाउल का चित भी सफेद कपड़ों के समान शांत, पवित्र एवं पावन होता है । लेकिन बाउल का परिधान सफेद लुंगी, गेरुवा कुर्ता एवं पगड़ी, गले में माला तथा ललट एवं कंठ पर मिट्टी तथा चंदन के मिश्रण का तिलक लगाते है । बाउल मुख्यता एकतारा, डुगी, गुबगुबी, पैरों में घुंगरु कंधे पर झोला