"बाउल लोक गायन": अवतरणों में अंतर

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बंगाल में जहाँ बाउल गायक रहते है उस स्थान को आखरा या आखरा आश्रम कहते है । आज के प्रसिद्ध बाउल श्री पूर्ण दास, बालीगंज, कलकत्ता (जिनका जन्म स्थान बौलपुर, शान्तिनिकेतन, जिला-वीरभूम है) जिन्होने विश्व में बाउल गायन का प्रदर्शन कर बाउल गायन की पहचान दुनिया भर (अमेरिका, जापन, बंगलादेश, ब्रिटिश) के बाउल गायक शान्तिनिकेतन के नजदीक बौलपुर में अजय नदी के पास जयदेव मन्दिर के बगल में केदुली मेला (इसे जयदेव मेला के नाम से भी जानते है) जो १४ दिन के लिए लगता है में भाग लेने के लिए आते है । यह पौष संक्रान्ति के दिन शुरु होता है बाउल गायन कितना महत्वपुर्ण है यह इसी से पता चलता है कि इस मेले के पहले ३ दिन बाउल गायन के लिए ही होते है ।
 
ऐसे सभी बाउल गायको का मानना है कि बाउल गायन की शुरुवात भारत (बंगाल) में केन्दुली नामक स्थान जो जिला वीरभूम के अंर्तगत आता है जिसको अब बंगाल के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं कवि जयदेव केन्दुली के नाम से जाना जाता है से हुई । अजय नदी के पास केन्दुली मेला लगने का एक बहुत बड़ा कारण यह हो सकता है कि पौष संक्रान्ति के दिन अजय नदी जो काटवा, वरदमान नाम स्थान पर भगीरथी नदी में मिलती है जो गंगा नदी का ही एक भाग है का पानी सुबह कुछ क्षणों के लिए उलटा बहता है । इस समय या इस दिन नदी में स्नान करने से गंगा में स्नान करने के समान होता है । श्री पुर्ण दास बाउल बालीगंज, कलकत्ता बताते है कि बाउल गायन जगत में सबसे ज्यादा गायन भबा पागला का लिखा गया है । भबा पागला मुस्लिम समुदाय से संबधित थे वह बंगलादेश के प्रसिद्ध एवं ऐसे बाउल गीतकार थे जो खुद गाना लिखते, गाते और बजाते थे । भबा पागला के अलावा भी अनेक बाउल गायक इस गायन में जाने जाते है जैसे बंगलादेश के लालन फकीर जिनके गायन से भारत के ख्याति प्राप्त लेखक रविन्द्र नाथ टैगोर भी प्रभावित हुए थे ।