"मुझे जीने दो (1963 फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर

→‎रोचक तथ्य: +कुछ सामग्री
पंक्ति 59:
 
== रोचक तथ्य ==
यह पूरी की पूरी फिल्म [[चम्बल परियोजना|चम्बल घाटी]] के डाकू समस्याग्रस्त इलाके [[भिण्ड]] एवं [[मुरैना]] जिलों के खतरनाक बीहड़ों में [[मध्य प्रदेश]] पुलिस के सुरक्षा कवच में फिल्मायी गयी थी।<ref>{{cite news|url=http://beta.thehindu.com/arts/cinema/article428970.ece|title=Mujhe Jeene Do (1963)|date=May 13, 2010|work=The Hindu}}</ref>, चम्बल घाटी में जाकर फिल्म की शूटिंग करना उन दिनों कोई हँसी मज़ाक नहीं अपितु दुस्साहस का काम था परन्तु अपनी धुन के पक्के सुनील दत्त ने उसे बखूबी अंजाम दिया। इस काम में मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें पूरी सहायता प्रदान की थी।
 
== समीक्षा ==
इस फिल्म के निर्देशक मणि भट्टाचार्य को इससे पूर्व चूँकि दो बीघा जमीन तथा मधुमती जैसी फिल्मों में सहायक निर्देशक के रूप में कार्य करने का अनुभव था अत: उन्होंने डाकू की सामाजिक समस्या को मानवीय दृष्टिकोण से देखने, समझने और फिल्माने की ओर विशेष ध्यान दिया।