"डीज़ल इंजन": अवतरणों में अंतर
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'''डीज़ल ईंजन''' एक
इस इंजन में वायु को प्रथमतया दबाया जाता है जिसकी वजह से इसका तापमान बढ़ता है । इसके बाद इसमें जैसे ही डीज़ल उड़ेला जाता है यह गरमी की वजह से जलने लगता है जिसकी वजह से और गर्मी पैदा होती है और यह अपने उपर लगे पिस्टन को धकेलता है । इस कारण से गति प्राप्त होती है जिसको कई गियरों तथा रेलों के सहारे इच्छित काम करने में लगाया जाता है ।
==इतिहास==
[[चित्र:Diesel's Engine.jpg|right|thumb|300px|सन् 1897 में तैयार डीजल का मूल इंजन म्युनिख के संग्रहालय में रखा हुआ है।]]
सन् 1892 में रुडोल्फ डीज़ल (Rudolf Diesel) ने आंतरिक दहन इंजन का पेटेंट कराया और इन्हीं के नाम पर इसका नाम डीज़ल इंजन पड़ा, यद्यपि प्रथम वास्तविक इंजन का निर्माण 1895 ई0 में हुआ। इस इंजन का स्वतंत्र परीक्षण शोज़ोटर (Schozoter) ने 1897 ई0 में ऑगवर्ग में किया और डीज़ल इंजनों का आम प्रदर्शन [[म्युनिख]] प्रदर्शनी में 1898 ई0 में हुआ।
सन् 1900 में डीज़ल ने पैरिस कांग्रेस के संमुख यह घोषणा की कि काफी प्रयोग के बाद परिचालन चक्र का जो अंतिम रूप उसने ग्रहण किया, वह चार स्ट्रोक के किस्म का एक ही आघात के अनुक्रम से चूषण, दबाव, विस्तार और विकासवाला था। पहले के डीज़ल इंजन वायु-अंत:क्षेप इंजन थे और इंजन के सिलिंडर में ईधंन देने के लिए बहुत ही ऊँचा दबाव प्रयोग में लाया जाता था। सन् 1910 में जेम्स मैक्केचनिक (James Mckechnic) ने ठोस इंजेक्शन प्रणाली का विकास किया, जिसमें सरल, ऊँचे दबाववाला ईधंन-तेल पंप इंजेक्शन के काम में प्रयुक्त हुआ।
==डीज़ल और गैसोलिन इंजन में भेद==
स्फुलिंग-प्रज्वलन-गैसोलिन (Spark ignition gasoline) और संपीडन-प्रज्वलन-तेल (Compression ignition oil) इंजनों में अंतर ईधंन की प्रकृति में है। स्फुलिंग प्रज्वलन इंजन के [[कार्बूरेटर]] (Carburettor) में गैसोलिन और हवा बिल्कुल मिला दी जाती है और इंजन के सिलिंडर में, यह समरूप मिश्रण, भार चाहे जितना हो, दिए हुए अनुपात से पहुँचाया जाता है। हवा का ईधंन से अनुपात, जो वायु-ईधंन-अनुपात कहलाता है, गैसोलिन इंजन में 14.5 : 1 स्थिर रहता है। चूँकि डीज़ल में हवा और ईधंनवाले तेल के मिलाने का कोई अतिरिक्त कक्ष नहीं होता, इसलिए मिलाने का काम सिलिंडर में ही पूरा करना पड़ता है। डीज़ल सदैव हवा की निश्चित मात्रा को ही संपीड़ित करता है, पर बोझ के अनुसार अंत:क्षिप्त ईधंन की मात्रा में अंतर रह सकता है। यदि बोझ पूरा है तो वायुईधंन का अनुपात 22 : 1 रहता है। यदि इंजन कोई काम नहीं करता तो अनुपात 85 : 1 रहता है। डीज़ल इंजन को गैसोलिन इंजन की तुलना में अधिक मात्रा में हवा की आवश्यकता होती है। वायु-ईधंन-अनुपात के तथा संपीड़न के ऊँचा रहने से डीज़ल इंजन में कम ईधंन खर्च होता है। जितने ईधंन से गैसोलिन मोटर गाड़ी कोई काम करती है, उतने ही ईधंन में डीज़ल मोटर गाड़ी दुगुना काम करेगी। डीज़ल इंजन में एक अन्य लाभ यह है कि इसमें सस्ता ईधंन जल सकता है और ईधंन में आग लगने की संभावना कम रहती है।
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[[af:Dieselenjin]]
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