"कृपाचार्य": अवतरणों में अंतर

छो r2.7.1) (Robot: Adding ne:कृपाचार्य
Rmv UnApt/ Xtra Nav Tmplts
पंक्ति 7:
[[गौतम]] ऋषि के पुत्र का नाम [[शरद्वान]] था। उनका जन्म बाणों के साथ हुआ था। उन्हें वेदाभ्यास में थोडा़ भी रुचि नहीं थी और धनुर्विद्या से उन्हें अत्यधिक लगाव था। वे धनुर्विद्या में इतने निपुण हो गये कि देवराज [[इन्द्र]] उनसे भयभीत रहने लगे। इन्द्र ने उन्हें साधना से डिगाने के लिये [[नामपदी]] नामक एक देवकन्या को उनके पास भेज दिया। उस देवकन्या के सौन्दर्य के प्रभाव से शरद्वान इतने कामपीड़ित हुये कि उनका वीर्य स्खलित हो कर एक सरकंडे पर आ गिरा। वह सरकंडा दो भागों में विभक्त हो गया जिसमें से एक भाग से [[कृप]] नामक बालक उत्पन्न हुआ और दूसरे भाग से [[कृपी]] नामक कन्या उत्पन्न हुई। कृप भी धनुर्विद्या में अपने पिता के समान ही पारंगत हुये। [[भीष्म]] जी ने इन्हीं कृप को पाण्डवों और कौरवों की शिक्षा-दीक्षा के लिये नियुक्त किया और वे कृपाचार्य के नाम से विख्यात हुये।
 
== संदर्भ ==
==स्रोत==
{{टिप्पणीसूची|२}}
 
== बाहरी सम्पर्क ==
[http://sukhsagarse.blogspot.com सुखसागर] के सौजन्य से
 
 
{{कुरुक्षेत्र युद्ध के योद्धा}}
{{महाभारत}}