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सन् १६७४ तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरन्दर की संधि के अन्तर्गत उन्हें मुगलों को देने पड़े थे ।
 
पश्चिमी जूनमहारष्ट्र १६७४में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु ब्राहमणों ने उनका घोर विरोध किया क्योकि वर्ण व्यवस्था के हिसाब से कुर्मी जाति उस समय शुद्र समझी जाती थी । शिवाजी के निजी सचीव बालाजी आव जी ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और उन्होंने ने काशी में गंगाभ नमक ब्राहमण के पास तीन दूतो को हेमा भेजा, किन्तु गंगा ने शास्त्रानुसारप्रस्ताव अपनाठुकरा दिया क्योकि शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे उसने कहा की क्षत्रियता का प्रमाण लाओ तभी वह राज्याभिषेक करवायाकरेगा | बालाजी आव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध मेवार के सिसोदिया वंश से समबंद्ध के प्रमाण भेजे जिससे संतुष्ट होकर वह रायगढ़ आया | किन्तु यहाँ आने के बाद जब उसने पुन जाँच पड़ताल की तो उसने प्रमाणों को गलत पाया और राज्याभिषेक से मना कर दिया । अंतत: मजबूर होकर उसे एक लाख रुपये के प्रलोभन दिया गया तब उसने राज्याभिषेक किया । राज्याभिषेक के बाद भी पूना के ब्राहमणों ने शिवाजी को राजा मानने से मना कर दिया विवश होकर शिवाजी को अष्टप्रधान मंडल की स्थापना करनी पड़ी <ref> http://books.google.co.in/books?id=Rkn2DhDI4iAC&pg=PT4&dq=%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF+%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE&source=gbs_toc_r&cad=3#v=onepage&q=%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%20%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF%20%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE&f=false </ref> । विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया । शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की । काशी के पण्डित विशेश्वर जी भट्ट को इसमें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था । पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया । इस कारण से 4 अक्टूबर 1674 को दूसरी बार उनका राज्याभिषेक हुआ । दो बार हुए इस समारोह में लघभग 50 लाख रुपये खर्च हुए । इस समारोह में हिन्दू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था । [[विजयनगर]] के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था । एक स्वतंत्र शासक की तरह उस्ने अपने नामका सिक्का चलवाया ।इसके बाद बीजापुर के सुल्तान ने कोंकण विजय के लिए अपने दो सेनाधीशों को शिवाजी के विरूद्ध भेजा पर वे असफल रहे ।
 
=== दक्षिण में दिग्विजय ===