"बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी": अवतरणों में अंतर
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[[क्वांटम सांख्यिकी]] तथा [[सांख्यिकीय भौतिकी]] में अविलगनीय (indistinguishable) कणों का संचय केवल दो विविक्त ऊर्जा प्रावस्थाओं (discrete energy states) में रह रकता है। इसमें से एक का नाम '''बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी''' (Bose–Einstein statistics) है। [[लेजर]] तथा [[घर्षण]]हीन [[अतितरल हिलियम]] के व्यवहार इसी सांख्यिकी के परिणाम हैं। इस व्यवहार का सिद्धान्त १९२४-२५ में [[सत्येन्द्र नाथ बसु]] और [[अल्बर्ट आइंस्टीन]] ने विकसित किया था। 'अविलगनीय कणों' से मतलब उन कणों से है जिनकी ऊर्जा अवस्थाएँ बिल्कुल समान हों।
यह [[
यह सांख्यिकी १९२० में सत्येन्द्रनाथ बोस द्वारा प्रतिपादित की गयी थी और [[फोटॉन|फोटानों]] के सांख्यिकीय व्यवहार को बताने के लिये थी। इसे सन् १९२४ में आइंस्टीन ने कणों पर सामान्यीकृत किया।
== बोस-आइन्स्टाइन वितरण==
सांख्यिकीय रूप से, ऊष्मागतीय साम्य की दशा में, ''E<sub>i</sub>'' [[ऊर्जा]] वाले कणों की संख्या ''n<sub>i</sub>'' निम्नलिखित सम्बन्ध के अनुसार होगी-
:<math> n_i = \frac{g_i} { \exp ( \frac{ E_i - \mu } {k_{B}T} ) - 1 } \,</math>
जहाँ :
* ''g<sub>i</sub>'' उन प्रावस्थाओं (states) की कुल संख्या है जो ''E<sub>i</sub>'' ऊर्जा वाले हैं।
* ''μ'' रासायनिक विभव है,
* ''k<sub>B</sub>'' बोल्टमान स्थिरांक है,
* ''T'' [[तापमान]] है।
==सीमा==
अधिक तापमान पर क्वाण्टम प्रभाव अदृष्य होने लगता है और तब बोस-आइंस्टाइन सांख्यिकी, [[मैक्सवेल-बोल्टमान सांख्यिकी]] की तरफ अग्रसर होने लगती है। किन्तु कम ताप पर दोनों सांख्यिकी अलग-अलग रहती हैं।
==इन्हें भी देखें==
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