"खरोष्ठी": अवतरणों में अंतर

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प्रत्येक व्यंजन में अ की विद्यमानता, दीर्घस्वरों एवं स्वरमात्राओं का अभाव, अन्य स्वरमात्राओं का ऋजुदंडों द्वारा व्यक्तीकरण, व्यंजनों के पूर्व पंचम वर्णों के लिए सवंत्र अनुस्वार का प्रयोग तथा संयुक्ताक्षरों की अल्पता खरोष्ठी लिपि की कुछ विशेषताएँ हैं।
 
इसकी विशेषताओं एवं वर्णों के घसीट स्वरूप से सिद्ध होता है कि यह लिपिकों और व्यापारियों आदि की लिपि थी किंतु खरोष्ठी में लिखी खोतान[[ख़ोतान]] से प्राप्त पांडुलिपि से इसके एक दूसरे परिष्कृत रूप का अस्तित्व भी सिद्ध होता है, जिसका प्रयोग शास्त्रों के लेखन में होता था।
 
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