"कार्बन-१४ द्वारा कालनिर्धारण": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Radiocarbon bomb spike.svg|thumb|300px|right|वातावरणीय <sup>14</sup>C, [[न्यूज़ीलैंड]]<ref>{{cite web
|url=http://cdiac.esd.ornl.gov/trends/co2/welling.html
|title=एट्मॉस्फेरिकवायुमंडलीय δ<sup>14</sup>C रिकॉर्ड वेलिंग्टन से
|work= [[:en:Carbon Dioxide Information Analysis Center|कार्बनप्रांगार डाईऑक्साइडद्विजारेय इन्फॉर्मेशनसूचना एनालिरिसविश्लेषण सेंटरकेंद्र]]
|accessdate=[[१ मई]] [[२००८]]
}}</ref> एवं [[ऑस्ट्रिया]].<ref>{{cite web
|url=http://cdiac.esd.ornl.gov/trends/co2/cent-verm.html
|title= δ<sup>14</sup>कार्बनप्रांगार डाई ऑक्साइडद्विजारेय रिकॉर्ड वर्मुंट से
|work=[[:en:Carbon Dioxide Information Analysis Center|कार्बनप्रांगार डाईऑक्साइडद्विजारेय इन्फॉर्मेशनसूचना एनालिरिसविश्लेषण सेंटरकेंद्र]]
|accessdate=[[१ मई]] [[२००८]]
}}</ref> न्यूज़ीलैंड वक्र आरेख [[दक्षिणी गोलार्ध]] के लिए, एवं [[ऑस्ट्रिया]] वक्र [[उत्तरी गोलार्ध]] के लिए सांकेतिक प्रतिनिधित्व करता है। वातावरणीय नाभिकीय हथियारों के परीक्षणों के कारण <sup>१४</sup>C की उत्तरी गोलार्ध में मात्रा लगभग दोगुनी हो गयी है।<ref>{{cite web
|url=http://www1.phys.uu.nl/ams/Radiocarbon.htm
|title= प्रांगार काल निर्धारण विधि
|title= रेडियोकार्बन डेटिंग
|publisher=[[:en:Utrecht University|यूट्रेच विश्वविद्यालय]]
|accessdate=[[१ मई]] [[२००८]]
}}</ref>]]
'''कार्बन[[प्रांगार]] काल निर्धारण विधि''' ([[अंग्रेज़ी]]:''कार्बन-१४ डेटिंग'') का प्रयोग [[जीवाश्मविज्ञान|पुरातत्व-जीव विज्ञान]] में [[जंतु|जंतुओं]] एवं [[पौधों]] के प्राप्त अवशेषों के आधार पर जीवन काल, समय चक्र का निर्धारण करने में किया जाता है। इसमें [[कार्बनप्रांगार-१२]] एवं [[कार्बनप्रांगार-१४]] के मध्य अनुपात निकाला जाता है। <ref>[http://hi.w3dictionary.org/index.php?q=carbon-14%20dating कार्बनप्रांगार-१४ डेटिंग- अंग्रेजी भाषा की डिक्शनरी पर]</ref>
[[कार्बनप्रांगार]] के दो स्थिर [[रेडियोधर्मी|अरेडियोधर्मी]] [[समस्थानिक]]: [[कार्बनप्रांगार-१२]] (<sup>12</sup>C), और [[कार्बनप्रांगार-१३]] (<sup>१३</sup>C) होते हैं। इनके अलावा एक अस्थिर [[रेडियोधर्मी]] [[समस्थानिक]] (<sup>१३</sup>C) के अंश भी पृथ्वी पर मिलते हैं।<ref>[http://hi.w3dictionary.org/index.php?q=radiocarbon रेडियोकार्बनरेडियोप्रांगार- अंग्रेजी भाषा की डिक्शनरी पर]</ref> अर्थात कार्बनप्रांगार-१४ का एक निर्धारित मात्रा का नमूना ५७३० वर्षों के बाद आधी मात्रा का हो जाता है। ऐसा रेडियोधर्मिता क्षय के कारण होता है। इस कारण से कार्बनप्रांगार-१४ पृथ्वी से बहुत समय पूर्व समाप्त हो चुका होता, यदि सूर्य की कॉर्मिक किरणों के पृथ्वी के वातावरण की [[नाइट्रोजन|भूयाति ]] पर प्रभाव से और उत्पादन न हुआ होता। ब्रह्माण्डीय किरणों से प्राप्त [[न्यूट्रॉन]] नाइट्रोजनभूयाति अणुओं (N<sub>२</sub>) से निम्न परमाणु प्रतिक्रिया करते हैं:
:<math>n + \mathrm{^{14}_{7}N} \rightarrow \mathrm{^{14}_{6}C} + p</math>
 
कार्बनप्रांगार-१४ के उत्पादन की अधिकतम दर ९-१५ &nbsp;कि.मी. (३०,००० से ५०,००० फीट) की भू-चुम्बकीय ऊंचाइयों पर होती है; किन्तु कार्बनप्रांगार-१४ पूरे वातावरण में समान दर से फैलता है और [[ऑक्सीजन]] के अणुओं से प्रतिक्रिया कर [[कार्बनप्रांगार डाईऑक्साइडद्विजारेय]] बनाता है। यह कार्बनप्रांगार डाई ऑक्साइडद्विजारेय सागर के जल में भि घुल कर फैल जाती है। पौधे वातावरण की कार्बन[[प्रांगार डाई ऑक्साइडद्विजारेय]] को [[फोटोसिंथेसिसप्रकाश-संश्लेषण]] द्वारा प्रयोग करते हैं, एवं उनका सेवन कर पाचन के बाद जंतु इसे निष्कासित करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक जीवित प्राणी लगातार कार्बनप्रांगार-१४ को वातावरण से लेन-देन करता रहता है, जब तक वो जीवित रहता है। उसके जीवन के बाद ये अदला-बदली समाप्त हो जाती है। इसके बाद कार्बनप्रांगार-१४ की शरीर में शेष मात्रा का [[रेडियोधर्मी]] बीटा क्षय के द्वारा ह्रास होने लगता है। इस ह्रास की दर अर्ध आयु काल यानि ५,७३०±४० वर्ष में आधी मात्रा होती है।
:<math>\mathrm{~^{14}_{6}C}\rightarrow\mathrm{~^{14}_{7}N}+ e^{-} + \bar{\nu}_e</math>
 
[[कार्बनप्रांगार १४]] की खोज [[२७ फरवरी]], [[१९४०]] में मार्टिन कैमेन और सैम रुबेन ने [[:en:University of Chicago|कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय रेडियेशन प्रयोगशाला]], बर्कले में की थी।
जब कार्बनप्रांगार का अंश पृथ्वी में दब जाता है तब कार्बनप्रांगार-१४ ('''<sup>१४</sup>C''') का रेडियोधर्मिता के कारण ह्रास होता रहता है। पर कार्बनप्रांगार के दूसरे समस्थाकनिकों का वायुमंडल से संपर्क विच्छे१द और [[कार्बनप्रांगार डाईऑक्साइड|कार्बन-द्वि-ओषिदद्विजारेय]] न बनने के कारण उनके आपस के अनुपात में अंतर हो जाता है। पृथ्वी में दबे कार्बनप्रांगार में उसके समस्थानिकों का अनुपात जानकर उसके दबने की आयु का पता लगभग शताब्दी में कर सकते हैं। <ref>[http://v-k-s-c.blogspot.com/2008/02/ays-of-civilisation-and-legends-sabhyta.html सभ्यरता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं- कालचक्र: सभ्यता की कहानी] । [[१९ फरवरी]], [[२००८]]। मेरी कलम से</ref>
 
कार्बनकालप्रांगारकाल विधि के माध्यम से तिथि निर्धारण होने पर [[इतिहास]] एवं वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी होने में सहायता मिलती है। यह विधि कई कारणों से विवादों में रही है वैज्ञानिकों के अनुसार रेडियोकॉर्बन का जितनी तेजी से क्षय होता है, उससे २७ से २८ प्रतिशत ज्यादा इसका निर्माण होता है। जिससे संतुलन की अवस्था प्राप्त होना मुश्किल है। ऐसा माना जाता है कि प्राणियों की मृत्यु के बाद भी वे कार्बनप्रांगार का अवशोषण करते हैं और अस्थिर [[रेडियोधर्मी]]-तत्व का धीरे-धीरे क्षय होता है। पुरातात्विक नमूने में उपस्थित कॉर्बन-१४ के आधार पर उसकी डेट की गणना करते हैं। [[३५६]] ई. में [[भूमध्य सागर]] के तट पर आये विनाशाकारी सूनामी की तिथि निर्धारण वैज्ञानिकों ने कार्बनप्रांगार डेटिंग द्वारा ही की है। <ref>[http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2875413.cms फिर से आ सकता है धरती पर 'खौफनाक दिन']</ref>
 
रेडियोकार्बनरेडियोप्रांगार डेटिंग तकनीक का आविष्कार [[१९४९]] में [[शिकागो विश्वविद्यालय]] के विलियर्ड लिबी और उनके साथियों ने किया था। [[१९६०]] में उन्हें इस कार्य के लिए [[रसायन विज्ञान]] के [[नोबेल पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया था। उन्होंने कार्बनप्रांगार डेटिंग के माध्यम से पहली बार लकड़ी की आयु पता की थी। वर्ष [[२००४]] में यूमेआ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को[[स्वीडन]] के दलारना प्रांत की फुलु पहाड़ियों में लगभग दस हजार वर्ष पुराना [[देवदार]] का एक पेड़ मिला है जिसके बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह [[विश्व का सबसे पुराना वृक्ष]] है। कार्बनप्रांगार डेटिंग पद्धति से गणना के बाद वैज्ञानिकों ने इसे धरती का सबसे पुराना पेड़ कहा है। <ref>[http://paryavaran-digest.blogspot.com/2008/05/blog-post_21.html वैज्ञानिकों ने खोजा `सबसे बूढ़ा पेड़'] बुधवार, [[२१ मई]], [[२००८]]। डॉ. खुशालसिंह पुरोहित। पर्यावरण डायजेस्ट</ref> इसके अलावा कार्बनप्रांगार-१४ डेटिंग का प्रयोग अनेक क्श्जेत्रों में काल-निर्धारण के लिए किया जाता है।<ref>[http://www.hindustandainik.com/news/2031_2043383,0065000700000001.htm वैज्ञानिक पद्धति 'कार्बनप्रांगार डेटिंग' से भी इन स्तरों की तिथि 1100 से 900 ईपू निर्धारित हुई] हिन्दुस्तान दैनिक</ref> व्हिस्की कितनी पुरानी है, इसके लिए भी यह विधि कारगर एवं प्रयोगनीय रही है। आक्सफोर्ड रेडियो कार्बनप्रांगार एसीलरेटर के उप निदेशक टाम हाइहम के अनुसार [[१९५०]] के दशक में हुए परमाणु परीक्षण से निकले रेडियोसक्रिय पदार्थो की मौजूदगी के आधार पर व्हिस्की बनने का समय जाना जा सकता है।<ref>[http://in.jagran.yahoo.com/news/international/general/3_5_5442808.html/print/ व्हिस्की की उम्र बताने में परमाणु बम परीक्षण मददगार ] याहू जागरण पर</ref>
 
== संदर्भ ==