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'''सोना''' या '''स्वर्ण''' (Gold) अत्यंत चमकदार मूल्यवान [[धातु]] है। यह [[आवर्त सारणी]] के प्रथम अंतर्ववर्ती समूह (transition group) में [[ताम्र]] तथा [[रजत]] के साथ स्थित है। इसका केवल एक स्थिर [[समस्थानिक]] (isotope, द्रव्यमान 197) प्राप्त है। कृत्रिम साधनों द्वारा प्राप्त रेडियोधर्मी समस्थानिकों का द्रव्यमान क्रमश: 192, 193, 194, 195, 196, 198 तथा 199 है।
 
== परिचय ==
'''सोना''' एक [[धातु]] एवं [[रासायनिक तत्व|तत्व]] है । शुद्ध सोना चमकदार [[पीला|पीले]] रंग का होता है जो कि बहुत ही आकर्षक रंग है। यह धातु बहुत कीमती है और प्राचीन काल से [[सिक्का|सिक्के]] बनाने, [[आभूषण]] बनाने एवं धन के संग्रह के लिये प्रयोग की जाती रही है। सोना घना, मुलायम, चमकदार, सर्वाधिक संपीड्य (malleable) एवं तन्य (ductile) धातु है। रासायनिक रूप से यह एक तत्व है जिसका प्रतीक (symbol) '''Au''' एवं [[परमाणु क्रमांक]] ७९ है। यह एक ट्रांजिशन धातु है। अधिकांश रसायन इससे कोई क्रिया नहीं करते। सोने के आधुनिक औद्योगिक अनुप्रयोग हैं - दन्त-चिकित्सा में, एलेक्ट्रॉनिकी में।
 
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मध्ययुग के कीमियागरों का लक्ष्य निम्न धातु (लोहे, ताम्र, आदि) को स्वर्ण में परिवर्तन करना था। वे ऐसे पत्थर पारस की खोज करते रहे जिसके द्वारा निम्न धातुओं से स्वर्ण प्राप्त हो जाए। इस काल में लोगों को रासायनिक क्रिया की वास्तविक प्रकृति का ज्ञान न था। अनेक लोगों ने दावे किये कि उन्होंने ऐसे गुर का ज्ञान पा लिया है जिसके द्वारा वे लौह से स्वर्ण बना सकते हैं जो बाद में सदैव मिथ्या सिद्ध हुए।
 
== उपस्थिति ==
स्वर्ण प्राय: मुक्त अवस्था में पाया जाता है। यह उत्तम (noble) गुण का तत्व है जिसके कारण से उसके यौगिक प्राय: अस्थायी ही होते हैं। आग्नेय (igneous) चट्टानों में यह बहुत सूक्ष्म मात्रा में वितरित रहता है परंतु समय के साथ क्वार्ट्‌ज नलिकाओं (quartz veins) में इसकी मात्रा में वृद्धि हो गई है। प्राकृतिक क्रियाओं के फलस्वरूप कुछ खनिज पदार्थों में जैसे लौह पायराइट (Fe S2), सीस सल्फाइड (Pb S), चेलकोलाइट (Cu2 S) आदि अयस्कों के साथ स्वर्ण भी कुछ मात्रा में जमा हो गया है। यद्यपि इसकी मात्रा न्यून ही रहती है परंतु इन धातुओं का शोधन करते समय स्वर्ण की सुमिचत मात्रा मिल जाती है। चट्टानों पर जल के प्रभाव द्वारा स्वर्ण के सूक्ष्म मात्रा में पथरीले तथा रेतीले स्थानों में जमा होने के कारण पहाड़ी जलस्रोतों में कभी कभी इसके कण मिलते हैं। केवल टेल्डूराइल के रूप में ही इसके यौगिक मिलते हैं।
 
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दक्षिण अमरीका के कोलंबिया प्रदेश, मेक्सिको, संयुक्त राष्ट्र अमरीका के केलीफोर्निया तथा एलासका प्रदेश, आस्ट्रेलिया तथा दक्षिण अफ्रीका स्वर्ण उत्पादन के मुख्य केंद्र हैं। ऐसा अनुमान है कि यदि पंद्रहवीं शताब्दी के अंत से आज तक उत्पादित स्वर्ण को सजाकर रखा जाए तो लगभग 20 मीटर लंबा, चौड़ा तथा ऊँचा धन बनेगा। आश्चर्य तो यह है कि इतनी छोटी मात्रा के पदार्थ द्वारा करोड़ों मनुष्यों के भाग्य का नियंत्रण होता रहा है।
 
== निर्माणविधि ==
स्वर्ण निकालने की पुरानी विधि में चट्टानों की रेतीली भूमि को छिछले तवों पर धोया जाता था। स्वर्ण का उच्च घनत्व होने के कारण वह नीचे बैठ जाता था और हल्की रेत धोवन के साथ बाहर चली जाती थी। हाइड्रालिक विधि (hydraulic mining) में जल की तीव्र धारा को स्वर्णयुक्त चट्टानों द्वारा प्रविष्ट करते हैं जिससे स्वर्ण से मिश्रित रेत जमा हो जाती है।
 
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ऊपर बताई क्रियाओं से प्राप्त स्वर्ण में अपद्रव्य उपस्थित रहते हैं। इसके शोधन की आधुनिक विधि विद्युत्‌ अपघटन पर आधारित है। इस विधि में गोल्ड क्लोराइड को तनु (dilute) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में विलयित कर लेते हैं। विलयन में अशुद्ध स्वर्ण के धनाग्र और शुद्ध स्वर्ण के ऋणाग्र के बीच विद्युत्‌ प्रवाह करने पर अशुद्ध स्वर्ण विलयित हो ऋणाग्र पर जम जाता है।
 
== गुणधर्म ==
स्वर्ण पीले रंग की धातु है। अन्य धातुओं के मिश्रण से इसके रंग में अंतर आ जाता है। इसमें रजत का मिश्रण करने से इसका रंग हल्का पड़ जाता है। ताम्र के मिश्रण से पीला रंग गहरा पड़ जाता है। मिनी गोल्ड में 8.33 प्रतिशत ताम्र रहता है। यह शुद्ध स्वर्ण से अधिक लालिमा लिए रहता है। प्लैटिनम या पेलैडियम के सम्मिश्रण से स्वर्ण में श्वेत छटा आ जाती है।
 
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स्वर्ण नाइट्रिक, सल्फ्यूरिक अथवा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से नहीं प्रभावित होता परंतु अम्लराज (aqua regia) (3 भाग सांद्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा 1 भाग सांद्र नाइट्रिक अम्ल का सम्मिश्रण) में घुलकर क्लोरोऑरिक अम्ल (H Au Cl4) बनाता है। इसके अतिरिक्त गरम सेलीनिक अम्ल (selenic acid) क्षारीय सल्फाइड अथवा सोडियम थायोसल्फेट में विलेय है।
 
== यौगिक ==
स्वर्ण के 1 और 3 संयोजी यौगिक प्राप्त हैं। इसके अतिरिक्त इसके अनेक जटिल यौगिक भी बनाए गए हैं जिनमें इसकी संख्या उपसहसंयोजकता (co ordination number) 2 या 4 रहती है।
 
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स्वर्ण के कालायडी विलयन (colloidal solution) का रंग कणों के आकार पर निर्भर है। बड़े कणों के विलयन का रंग नीला रहता है। कणों का आकार छोटा होने पर क्रमश: लाल तथा नारंगी हो जाता है। क्लोरोऑरिक अम्ल विलयन में स्टैनश क्लोराइड (Sn Cl2) मिश्रित करने पर एक नीललोहित अवक्षेप प्राप्त होता है। इसे कैसियम नीललोहित (purple of cassius) कहते हैं। यह स्वर्ण का बड़ा संवेदनशील परीक्षण (delicate test) माना जाता है।
 
== उपयोग ==
स्वर्ण का [[मुद्रा]] तथा [[आभूषण]] के निमित्त प्राचीन काल से उपयोग होता रहा है। स्वर्ण अनेक धातुओं से मिश्रित हो [[मिश्रधातु]] बनाता है। मुद्रा में प्रयुक्त स्वर्ण में लगभग 90 प्रतिशत स्वर्ण रहता है। आभूषण के लिए प्रयुक्त स्वर्ण में भी न्यून मात्रा में अन्य धातुएँ मिलाई जाती हैं जिससे उसके भौतिक गुण सुधर जाएँ। स्वर्ण का उपयोग दंतकला तथा सजावटी अक्षर बनाने में हो रहा है।
 
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स्वर्ण की शुद्धता डिग्री अथवा कैरट में मापी जाती है। विशुद्ध स्वर्ण 1000 डिग्री अथवा 24 कैरट होता है।--- (र. चं. क.)
 
== सोने का उत्खनन ==
सोने का खनन भारत में अत्यंत प्राचीन समय से हो रहा है। कुछ विद्वानों का मत है कि दसवीं शताब्दी के पूर्व पर्याप्त मात्रा में खनन हुआ था। गत तीन शताब्दियों में अनेक भूवेत्ताओं ने भारत के स्वर्णयुक्त क्षेत्रों में कार्य किया किंतु अधिकांशत: वे आर्थिक स्तर पर सोना प्राप्त करने में असफल ही रहे। भारत में उत्पन्न लगभग संपूर्ण सोना मैसूर राज्य के कोलार तथा हट्टी स्वर्णक्षेत्रों से निकलता है। अत्यंत अल्प मात्रा में सोना उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, पंजाब तथा मद्रास राज्यों में भी अनेक नदियों की मिट्टी या रेत में पाया जाता है किंतु इसकी मात्रा साधारणत: इतनी कम है कि इसके आधार पर आधुनिक ढंग का कोई व्यवसाय आर्थिक दृष्टि से प्रारंभ नहीं किया जा सकता। इन क्षेत्रों में कुछ स्थानों पर स्थानीय निवासी अपने अवकाश के समय में इस मिट्टी एवम्‌ रेत को धोकर कभी कभी अल्प सोने की प्राप्ति कर लेते हैं।
 
=== कोलार स्वर्णक्षेत्र (Kolar Gold Field) ===
यह क्षेत्र मैसूर राज्य के कोलार जिले में मद्रास के पश्चिम की ओर 125 मील की दूरी पर स्थित है। समुद्र से 2,800 फुट की ऊँचाई पर यह क्षेत्र एक उच्च स्थली पर है। वैसे तो इस क्षेत्र का विस्तार उत्तर-दक्षिण में 50 मील तक है किंतु उत्पादन योग्य पटिट्का (Vein) की लंबाई लगभग 4 मील ही है। इस क्षेत्र में बालाघाट, नंदी दुर्ग, उरगाम, चैंपियन रीफ (Champion Reef) तथा मैसूर खानें स्थित हैं। खनन के प्रारंभ से मार्च 1951 के अंत तक 2,18,42,902 आउंस स्वर्ण, जिसका मूल्य 169.61 करोड़ रुपया हुआ, प्राप्त हुआ। कोलार क्षेत्र में कुल 30 पट्टिकाएँ हैं जिनकी औसत चौड़ाई 3-4 फुट है। इन पट्टिकाओं में सर्वाधिक स्वर्ण उत्पादक पट्टिका 'चैंपियन रीफ' है। इसमें नीले भूरे वर्ण का, विशुद्ध तथा कणोंवाला स्फटिक प्राप्त होता है। इसी स्फटिक के साहचर्य में सोना भी मिलता है। सोने के साथ ही टुरमेलीन (Tourmaline) भी सहायक खनिज के रूप में प्राप्त होता है। साथ ही साथ पायरोटाइट (Pyrotite), पायराइट, चाल्कोपायराइट, इल्मेनाइट, मैग्नेटाइट तथा शीलाइट (Shilite) आदि भी इस क्षेत्र की शिलाओं में मिलते हैं।
 
== स्वर्ण उद्योग ==
कोलार (मैसूर) की सोने की खानों में पूर्णत: आधुनिक एवं वैज्ञानिक विधियों से कार्य होता है। यहाँ की चार खानें 'मैसूर', 'नंदीद्रुग', 'उरगाम', और 'चैपियनरीफ' संसार की सर्वाधिक गहरी खानों में से है। इन खानों में से दो तो सतह से लगभग 10,000 फुट की गहराई तक पहुँच चुकी हैं। इन खानों में ताप 148° फारेनहाइड तक चला जाता है अत: शीतोत्पादक यंत्रों की सहायता से ताप 118° फारेनहाइट तक कम करने की व्यवस्था की गई है। सन्‌ 1953 में उरगाम खान बंद कर दी गई है। औसत रूप से कोलार में प्रति टन खनिज में लगभग पौने तीन माशे सोना पाया जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध से पूर्व विपुल मात्रा में सोने का निर्यात किया जाता था। सन्‌ 1939 में 3,14,515 आउंस सोने का उत्पादन हुआ जिसका मूल्य 3,24,34,364 रुपये हुआ किंतु इसके पश्चात्‌ स्वर्ण उत्पादन में अनियमित रूप से कमी होती चली गई है तथा सन्‌ 1947 में उत्पादन घटकर 1,71,795 आउंस रह गया जिसका मूल्य 5,10,69,000 रुपए तक पहुँचा। कोलार स्वर्णक्षेत्र की खानों का राष्ट्रीयकरण हो गया है तथा मैसूर की राज्य सरकार द्वारा संपूर्ण कार्य संचालित होता है। कोलार विश्व का एक अद्वितीय एवं आदर्श खनन नगर है। यहाँ स्वर्ण खानों के कर्मचारियों को लगभग सभी संभव सुविधाएँ प्रदान की गई हैं। खानों में भी आपातकालीन स्थिति का सामना करने के लिए विशेष सुरक्षा दल (Rescue Teams) रहते हैं।
 
हैदराबाद में हट्टी में भी सोना प्राप्त हुआ है। इसी प्रकार केरल में वायनाड नामक स्थान पर सोना मिला था किंतु ये निक्षेप कार्य योग्य नहीं थे।
 
== सोना चढ़ाना (Gilding) ==
किसी पदार्थ की सतह पर उसकी सुरक्षा अथवा अलंकरण हेतु यांत्रिक तथा रासायनिक साधनों से सोना चढ़ाया जाता है। यह कला बहुत ही प्राचीन है। मिस्रवासी आदिकाल ही में लकड़ी और हर प्रकार के धातुओं पर सोना चढ़ाने में प्रवीण तथा अभ्यस्त रहे। पुराने टेस्टामेंट में भी गिल्डिंग का उल्लेख मिलता है। रोम तथा ग्रीस आदि देशों में प्राचीन काल से इस कला को पूर्ण प्रोत्साहन मिलता रहा है। प्राचीन काल में अधिक मोटाई की सोने की पत्तियाँ प्रयोग में लाई जाती थीं। अत: इस प्रकार की गिल्डिंग अधिक मजबूत तथा चमकीली होती रही। पूर्वी देशों की सजावट की कला में इसका प्रमुख स्थान है- मंदिरों के गुंबजों तथा राजमहलों की शोभा बढ़ाने के लिए यह कला विशेषत: अपनाई जाती है। भारत में आज भी जिस विधि से सोना चढ़ाया जाता है इसकी प्राचीनता का एक सुंदर उदाहरण है।
 
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धातुओं पर विद्युत्‌ आवरण की कला को आजकल अधिक प्रोत्साहन मिल रहा है। एक छोटे से नाद में गोल्ड सायनाइड और सोडियम सायनाइड का विलयन डाल देते हैं तथा सोने का ऐनोड और जिसपर सोना चढ़ाना होता है, उसका कैथोड लटका देते हैं। फिर विद्युत्प्राह से सोने का आवरण कैथोड पर चढ़ जाता है। विद्युत्‌-आवरणीय सोने का रंग अन्य धातुओं के निक्षेपण पर निर्भर है। अच्छाई, टिकाऊपन, सुंदरता तथा सजावट के लिए निम्न कोटि की धातुओं पर पहले ताँबे का विद्युत्‌ आवरण करके चाँदी चढ़ाते हैं। तत्पश्चात्‌ सोना चढ़ाना उत्तम होता है। इस ढंग से सोने की बारीक से बारीक परत का आवरण चढ़ाया जा सकता है तथा जिस मोटाई का चाहें सोने का विद्युत्‌आवरण आवश्यकतानुसार चढ़ा सकते हैं। इससे धातुओं की संक्षरण से रक्षा होती है तथा हर प्रकार की वस्तुओं पर सोने की सुंदर चमक आ जाती है।
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[सायनाइड विधि]] - स्वर्ण निर्माण की धातुकार्मिक तकनीक
 
{{भौतिक तत्त्व}}
पंक्ति 169:
[[fiu-vro:Kuld]]
[[fr:Or]]
[[frr:Gul]]
[[fur:Aur]]
[[fy:Goud]]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/सोना" से प्राप्त