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[[चित्र:2 Helium.png|thumb|right|तरलीकृत यानाति]]
[[चित्र:Helium discharge tube.jpg|thumb|right|शुद्ध यानाति से भरी गैस डिस्चार्जनिकास ट्यूबनली]]
 
'''यानाति''' (हिलियम) एक रासायनिक [[तत्त्व]] है जो प्रायः [[गैस|गैसीय]] अवस्था में रहता है। यह एक [[निष्क्रिय गैस]] या नोबुल गैस (Noble gas) है तथा रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन, विष-हीन (नॉन-टॉक्सिक) भी है। इसका [[परमाणु क्रमांक]] २ है। सभी तत्वों में इसका [[क्वथनांक]] (boiling point) एवं [[गलनांक]] (melting point) सबसे कम है। [[द्रव]] यानाति का प्रयोग पदार्थों को अत्यन्त कम ताप तक ठण्डा करने के लिये किया जाता है; जैसे [[अतिचालकता|अतिचालक]] तारों को १.९ डिग्री केल्विन तक ठण्डा करने के लिये।
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== खोज एवं प्राप्ति ==
१८६८ ई. में सूर्य के [[सूर्यग्रहण|सर्वग्रास ग्रहण]] के अवसर पर सूर्य के वर्णमंडल के स्पेक्ट्रम में एक पीली रेखा देखी थी जो [[सोडियम|क्षारातु]] की पीली रेखा से भिन्न थी। जानसेन ने इस रेखा का नाम डी३ रखा और सर जे. नार्मन लॉकयर इस परिणाम पर पहुँचे कि यह रेखा किसी ऐसे तत्व की है जो पृथ्वी पर नहीं पाया जाता। उन्होंने ही '''हीलियम''' ([[ग्रीक]] शब्द, शब्दार्थ सूर्य) के नाम पर इसका नाम यानाति रखा। १८९४ ई. में सर विलियम रामजेम ने '''क्लीवाइट''' नामक खनिज से निकली गैस की परीक्षा से सिद्ध किया कि यह गैस पृथ्वी पर भी पाई जाती है। क्लीवाइट को तनु [[गन्धकाम्ल]] के साथ गरम करने और पीछे क्वीवाइट को निर्वात में गरम करने से इस गैस को प्राप्त किया था। ऐसी गैस में २० प्रतिशत [[नाइट्रोजन|भूयाति]] था। [[नाइट्रोजन|भूयाति]] के निकाल लेने पर गैस के स्पेक्ट्रम परीक्षण से स्पेक्ट्रम में डी३ रेखा मिली। पीछे पता लगा कि कुछ उल्कालोह में भी यह गैस विद्यमान थी। रामजे और टैवर्स ने इस गैस को बड़े परिश्रम और बड़ी सूक्ष्मता से परीक्षा कर देखा कि यह गैस वायुमंडल में भी रहता है। रामजे और फ्रेडेरिक सॉडी ने रेडियोऐक्टिव पदार्थों के स्वत:विघटन से प्राप्त उत्पाद में भी इस गैस को पाया। [[वायुमंडल]] में बड़ी अल्प मत्रा (१८,६०० में एक भाग), कुछ अन्य [[खनिज|खनिजों]], जैसे बोगेराइट और मोनेजाइट से निकली गैसों में यह पाया गया। मोनोज़ाइट के प्रति एक ग्राम में १ घन सेमी गैस पाई जाती है। [[पेट्रोलियम|महातु]] कूपों से निकली [[प्राकृतिक गैस]] में इसकी मात्रा १ प्रतिशत से लेकर ८ प्रतिशत तक पाई गई है।
 
== उत्पादन ==