"परमात्मा": अवतरणों में अंतर
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'''परमात्मा -
मैं न ज्योति हूँ न मैं प्रकाश हूँ क्योकि मैं पदार्थ नहीं हूँ. मैं शरीर और बुद्धि भी नहीं हूँ. मैं पूर्ण विशुद्ध ज्ञान हूँ. मैं सर्वत्र हूँ. सभी जड़ चेतन में मैं अंश रूप में व्याप्त हूँ. मैं न जन्म लेता हूँ न मरता हूँ, मैं सदा शाश्वत हूँ. मेरी उपस्थिति से प्रकृति भूतों की रचना करती है. मैं परम स्थिति हूँ और उपलब्धि का विषय हूँ. मैं जब प्रगट होता हूँ प्रकृति और पुरुष का नाश कर देता हूँ.'''
सन्दर्भ -प्रो बसंत जोशी के आलेख से
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