"तौहीद": अवतरणों में अंतर

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एक ख़ुदा को मानना​​ इस्लाम का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इसी का नाम तौहीद है, हजरत मुहम्मद [सल्ल०] दीने-इस्लाम के आखरी पैगम्बर है, दरअसल जब से दुनिया वजूद में आयी है यानी आदम [अलै०] से लेकर हजरत मुहम्मद [सल्ल०] तक धर्म या दीन तो एक ही रहा है यानि दीने-इस्लाम | अल्लाह तआला ने हर कौम और हर जगह अपने सन्देश वाहक यानि पैगम्बर भेजे हैं, हजरत मुहम्मद [सल्ल०] इस सिलसिले की आखरी कड़ी हैं, आदम [अलै०] ने तौहीद यानि एक ख़ुदा को मानना​​ और अल्लाह की ज़ात व उसकी सिफात में किसी को शरीक न करने की शिक्षा दी |
ख़ुदा को मानना​​. इस्लाम का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इस लागू और उसके गुणों दोनों पर है। यह शब्द कुरान में कहीं उपयोग नहीं हुआ। सूफ़ी संतों हज़रात के पास रखने के अर्थ यह है कि केवल परमेश्वर का अस्तित्व ही अस्तित्व वास्तविक है। वही वास्तविक तथ्य है। बाकी सब सक्षम है। दनियावी चीजें मनुष्य, पशु, दृश्य प्रकृति, सब उसकी पैदा की हुई हैं. समझतज़लह गुणों को नहीं मानते बल्कि जाति ही रखने का केंद्र बताते हैं। इस उलेमा ने इस सिलसिले में ज्ञान की एक अलग शाखा स्थापित की है। जिसे ''ज्ञान आलतोहीद वालसफ़ात'' कहते हैं और इस सिलसिले में कई मोशगाफयाँ हैं। लेकिन सार सब का यही है कि ईश्वर एकमात्र और उसका कोई साझी नहीं।
 
जैसे जैसे ज़माना तरक्की करता चला गया वैसे वैसे अल्लाह के पैगम्बर नयी नयी शिक्षाएँ लाते गए मगर बुनियादी शिक्षाएँ यानि [एक ख़ुदा को मानना​​ और अल्लाह की ज़ात व उसकी सिफात में किसी को शरीक न करना] हर पैगम्बर बतायीं और उस पर अमल करने की शिक्षा दीं और खुद भी उन पर अमल करके दिखाया | दनियावी चीजें मनुष्य, पशु, दृश्य प्रकृति, सब उसकी पैदा की हुई हैं | ईश्वर एकमात्र और उसका कोई साझी नहीं ।
 
==शहादत रखने==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/तौहीद" से प्राप्त