"ब्रह्म": अवतरणों में अंतर

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शाश्वत सुख नहिं अन्य.१२-६ श्वेताश्वतरोपनिषद्..
 
परन्तु जीवात्मा के लिए आनन्द शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है. जीवात्मा और परमात्मा में अंतर भी स्पष्ट किया है. जीवात्मा इस रस स्वरूप परमात्मा को पाकर आनन्द युक्त हो जाता है.
 
सन्दर्भ -सरल वेदांत -बसंत प्रभात जोशी