"नानाजी देशमुख": अवतरणों में अंतर
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==आर.एस.एस. कार्यकर्ता के रूप में==
नानाजी देशमुख लोकमान्य [[बाल गंगाधर तिलक]] के राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित हुए। तिलक से प्रेरित होकर उन्होंने समाज सेवा और सामाजिक गतिविधियों में
१९४० में, डॉ. हेडगेवार जी के निधन के बाद नानाजी ने कई युवकों को महाराष्ट्र की आर.एस.एस. शाखाओं में शामिल होने के लिये प्रेरित किया। नानाजी उन लोगों में थे जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र की सेवा में अर्पित करने के लिये आर.एस.एस. को दे दिया। वे प्रचारक के रूप में उत्तरप्रदेश भेजे गये। [[आगरा]] में वे पहली बार [[दीनदयाल उपाध्याय]] से मिले। बाद में वे [[गोरखपुर]] गये और लोगों को संघ की विचारधारा के बारे में बताया। यह कार्य आसान नहीं था। संघ के पास दैनिक खर्च के लिए भी पैसे नहीं होते थे। नानाजी को धर्मशालाओं में ठहरना पड़ता था और लगातार धर्मशाला बदलना भी पड़ता था, क्योंकि एक धर्मशाला में लगातार तीन दिनों से ज्यादा समय तक ठहरने नहीं दिया जाता था। अन्त में [[बाबा राघवदास]] ने उन्हें इस शर्त पर ठहरने दिया कि वे उनके लिये खाना बनाया करेंगे। तीन साल के अन्दर उनकी मेहनत रंग लायी और गोरखपुर के आसपास संघ की ढाई सौ शाखायें खुल गयीं। नानाजी ने शिक्षा पर बहुत जोर दिया। उन्होंने पहले सरस्वती शिशु मन्दिर की स्थापना गोरखपुर में की।
१९४७ में, आर.एस.एस. ने राष्ट्रधर्म और [[पांचजन्य]] नामक दो
==राजनीतिक जीवन==
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