"असुर": अवतरणों में अंतर
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'''असुर''' देवों के प्रतिद्वन्दी थे उनका मार्ग देवो के मार्ग से भिन्न था । यदि [[देव]] आध्यात्मिक शक्ति है, [[असुर]] भौतिक शक्ति है। असुर देवो से सदा युद्ध रत रहे उन्होने भारत मे अनेको वर्ष शासन किया तत्पश्चात ईरान के समीप वर्ती राज्यो पर असुरो ने विजय प्राप्त कर निन्वाह मे अपना साम्राज्य स्थापित किया, बाईबल मे भी असुर राजाओ का वर्णन यहुदियो को पकड़ कर दास बनाने का आता है इसी प्रकार भारत में भी जाति प्रथा को आरम्भ करने वाले असुर थे उन्होंने आर्यों को भी पकड़ कर दास बनाया था असुर वंश आर्य धरम के विरोधी निरंकुश व्यवस्था को मानने वाले थे ।
............................................................................................................................................................................................................................................................... '''असुर - भगवद्गीता में विस्तारपूर्वक आसुरी वृत्ति के विषय में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं.
दम्भ अर्थात वास्तविकता छिपाकर मिथ्या रूप दिखाना, ईश्वर भक्ति का गर्व पूर्वक बाजार में प्रचार करना, दर्प, सबको नीचा दिखाने की आदत, जो प्रभुता को नहीं पचा पाता, अभिमान अर्थात अपने को, अपने ज्ञान को श्रेष्ठ मानना, क्रोध, कठोर वाणी से दूसरे को जलाना, अपमान करना, मूढ़ता जो शुभ और अशुभ में फर्क नहीं कर सकता, उनका अन्तःकरण शुद्ध नहीं होता है न वह शारारिक रूप से पवित्र होते हैं, उनका कोई आचरण श्रेष्ठ नहीं होता, वह दूसरे को अपमानित करने वाले, कष्ट देने वाले गलत मार्ग में डालने वाले होते हैं। सत्य से कोई प्रीति अर्थात अज्ञान का नष्ट करने के लिए उनका कोई कार्य नहीं होता, ज्ञान के लिए वह कभी लालायित नहीं रहते।
आसुरी वृत्ति वाले जगत को आश्रय रहित, असत्य और बिना ईश्वर के मानते है। यह संसार स्त्री पुरुष के संयोग से उत्पन्न हुआ है और काम ही इसका कारण है, इसके सिवा और कुछ भी नहीं है। वह यह मानकर चलते हैं जो आज है वही सब कुछ है। भोग ही उनका जीवन है। देह ही उनके लिए सर्वोपरि है। उनके अनुसार पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक, ज्ञान, ईश्वर सब कल्पना है।
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