"अवतार": अवतरणों में अंतर
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== वाह्य सूत्र ==
* [http://v-k-s-c.blogspot.com/2008/08/buddhist-philosphy-buddhism.html अवतारों की कथा] - '''मेरी कलम से''' हिन्दी चिट्ठे पर सभी अवतारों की कथा अवतार यानि अवतरित होना ना कि जन्म लेना ,प्रकट होना जिस प्रकार क्रोध प्रकट होता है वह अवतरित नही होता उसे तो अहंकार जन्म देता है परन्तु अवतार का जन्म नही होता जन्म दो के संयोग से प्राप्त होता है ,जेसे अहंकार और इर्षा का संयोग क्रोध जन्मता है |अवतार अपनी लीला के द्वारा प्रेक्टिकली कर के दिखाता है |जो - जो कर्म अवतार करता है ,उसे अन्य सहायक अवतार नही कर पाते वह उनका बखान प्रचार करने वाले प्रचारक भर होते हैं बाकि रही बात अंश की हर जड़-चेतन भूत प्राणी उसी का अंश मात्र होता है |अवतार लेने के समय भगवान माया को अपने आधीन कर लेते हैं |
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अवतार का अर्थ है अवतरण अर्थात जो अपनी इच्छा से अवतरित हुआ हो. परम बोध को प्राप्त सिद्ध अपनी इच्छा से किसी संकल्प को पूरा करने के लिए जन्म लेता है वह अवतार कहलाता है. अवतार पुनर्जन्म की अवधारणा है. अवतार को मानने का अर्थ है पुनर्जन्म को मानना. पुनर्जन्म वेज्ञानिक अवधारणा है. सृष्टि में कोई भी वस्तु नष्ट नहीं होती केवल स्वरूप परिवर्तन होता है और जीव को नष्ट नहीं किया जा सकता.अवतारी पुरुष परम बोध के कारण वह माया के बंधन से मुक्त होता है अतः जन्म लेते हुए भी अजन्मा कहा जाता है. वह शरीर न होकर परम ज्ञान का पुंज होता है. शरीर तो लीला कार्य के लिए प्रत्यक्ष होता है.
बसंत प्रभात जोशी के आलेख से
[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]
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