"समरक़न्द": अवतरणों में अंतर

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'''समरक़न्द''' ({{lang-uz|Samarqand, Самарқанд}}, {{lang-fa|سمرقند}}) [[उज़बेकिस्तान]] का दूसरा सबसे बड़ा नगर है । [[मध्य एशिया]] में स्थित यह नगर ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण शहर रहा है । इस नगर का महत्व [[रेशम मार्ग]] पर पश्चिम और [[चीन]] के मध्य स्थित होने के कारण बहुत अधिक है । [[भारत]] के इतिहास में भी इस नगर का महत्व है क्योंकि [[बाबर]] इसी स्थान के शासक बनने की चेष्टा करता रहा था । बाद में जब वह विफल हो गया तो भागकर [[काबुल]] आया था जिसके बाद वो [[दिल्ली]] पर कब्ज़ा करने में कामयाब हो गया था । 'बीबी ख़ानिम की मस्जिद' इस शहर की सबसे प्रसिद्ध इमारत है । २००१ में [[यूनेस्को]] ने इस २७५० साल पुरान शहर को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया । इसका उस सूची में नाम है: 'समरकन्द - संस्कृति का चौराहा'।
 
==विवरण==
यह [[तुर्की-मंगोल]] बादशाह [[तैमूर लंग|तैमूर]] द्वारा स्थापित [[तैमूरी साम्राज्य]] की राजधानी रहा। समरकंद ७१९ मीटर की ऊँचाई पर [[ज़रफ़शान नदी]] की उपजाऊ घाटी में स्थित है। यहाँ के निवासियों के मुख्य व्यवसाय बाग़बानी, धातु एवं मिट्टी के बरतनों का निर्माण, कपड़े बनाना, रेशम, गेहूँ व चावल की [[कृषि]] और घोड़ा व खच्चर का पालन है। शहर के बीच रिगिस्तान नामक एक चौराहा है, जहाँ पर विभिन्न रंगों के पत्थरों से निर्मित कलात्मक इमारतें विद्यमान हैं। शहर की चारदीवारी के बाहर तैमूर के प्राचीन महल हैं। ईसापूर्व ३२९ में [[सिकंदर महान्‌महान]] ने इस नगर का विनाश किया था। १२२१ ई. में इस नगर की रक्षा के लिए १,१०,००० आदमियों ने [[चंगेज़ ख़ान]] का मुक़ाबला किया। १३६९ ई. में तैमूर ने इसे अपना निवासस्थान बनाया। १८वीं शताब्दी के प्रारंभ में यह [[चीन]] का भाग रहा। फिर [[बुख़ारा]] के अमीर के अंतर्गत रहा और अंत में सन्‌ १८६८ ई. में [[रूसी साम्राज्य]] का भाग बन गया।
 
== इन्हें भी देखें ==