"उद्दालक": अवतरणों में अंतर

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'''उद्दालक''', [[उपनिषद्]] युग के श्रेष्ठ तत्ववेत्ताओं में मूर्धन्य चिंतक थे। ये गौतम गोत्रीय [[अरुणि ऋषि]] के पुत्र थे और इसीलिए 'आरुणि' के नाम से विशेष प्रख्यात हैं। ये [[महाभारत]] में [[धौम्य ऋषि]] के शिष्य तथा अपनी एकनिष्ठ गुरुसेवा के निमित्त आदर्श शिष्य बतलाए गए हैं। (महाभारत, आदिपर्व)।
 
प्रायः माना जाता है कि ग्रीक सन्त [[थेल्स]] (७६ ईसापूर्व) विज्ञान के अग्रदूत थे। किन्तु प्रसिद्ध इतिहासकार [[देबीप्रसाद चट्टोपाध्याय]] ने सिद्ध किया है कि वास्तव में थेल्स नहीं बल्कि उद्दालक प्रथम चिन्तक थे जिन्होने ज्ञान प्राप्ति के लिए [[प्रयोग]] की आवश्यकता का प्रतिपादन किया था।
 
==गुरुभक्त आरुणि==
==परिचय==
ऋषि धौम्य के आश्रम में कई छात्र रहते थे। वह उन्हें पूरी तत्परता से पढ़ाते, साथ ही उनकी कड़ी परीक्षा भी
लेते रहते थे। इन परीक्षाओं में अलग-अलग कसौटियां तय की जातीं और देखा जाता कि विद्यार्थी सीखी गई विद्या और गुरु के प्रति कितना निष्ठावान है।
 
एक दिन मूसलाधार वर्षा हो रही थी। गुरु ने अपने एक छात्र आरुणि से कहा, 'बेटा! खेत की मेड़ टूट जाने से पानी बाहर निकला जा रहा है, सो तुम जाकर मेड़ बांध आओ।' आरुणि तत्काल उठ खड़ा हुआ और खेत की ओर चल दिया। पानी का बहाव तेज था। आरुणि ने मिट्टी जमाने की कोशिश की पर बहाव रुका नहीं। कोई उपाय न देख आरुणि उस स्थान पर लेट गया। इस प्रकार उसने पानी को रोक दिया मगर बहाव और वर्षा के वेग से वह बेहोश हो गया। बहुत रात बीत जाने पर भी जब वह न लौटा तो धौम्य को चिंता हुई। वह खेत पर उसे ढूंढने पहुंचे। देखा तो आरुणि पानी को रोके मेड़ के पास लेटा था। देखते ही गुरुजी भावविभोर हो गए।
 
==आरुणि के विचार==
आरुणि के अध्यात्म विचारों का विस्तृत विवेचन [[छान्दोग्य उपनिषद|छांदोग्य]] तथा [[बृहदारण्यक उपनिषद|बृहदारण्यक]] उपनिषदों में बड़े रोचक ढंग से किया गया है। तत्ववेत्ताओं के इतिहास में आरुणि का पद [[याज्ञवल्क्य]] के ही समकक्ष माना जाता है जो इनके शिष्य होने के अतिरिक्त उपनिषत्कालीन दार्शनिकों में नि:संशय सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं।