"सांथाल जनजाति": अवतरणों में अंतर

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इनकी [[भाषा]] [[संथाली]] और लिपि '''ओल्चिकी''' है। इनके सात मूल गोत्र हैं ; मरांडी, सोरेन, हासंदा, किस्कू, तुडू, मुरमु, तथा हेम्ब्रम। ये सोहराइ तथा सकरात नामक पर्व मनाते हैं। इनके [[विवाह]] को 'बापला' कहा जता है।
 
उनकी अद्वितीय विरासत की परंपरा और आश्चर्यजनक परिष्कृत जीवन शैली है। सबसे उल्लेखनीय हैं उनके [[लोकसंगीत]], गीत और [[नृत्य]] हैं। संथाली भाषा व्यापक रूप से बोली जाती है। दान करने की संरचना प्रचुर मात्रा में है ।है। उनकी स्वयं की मान्यता प्राप्त लिपि 'अल्चीकी' है, जो वनवासी समुदाय के लिये अद्वितीय है।
 
संथाल के सांस्कृतिक शोध दैनिक कार्य में परिलक्षित होते है -- जैसे डिजाइन, निर्माण, रंग संयोजन , और अपने घर की सफाई व्यवस्था में है|दीवारों पर आरेखण, चित्र और अपने आंगन की स्वच्छता कई आधुनिक शहरी घर के लिए शर्म की बात होगी।