"धर्म के लक्षण": अवतरणों में अंतर

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''(अर्थात ब्रह्मचर्य, सत्य, तप, दान, संयम, क्षमा, शौच, अहिंसा, शांति और अस्तेय इन दस अंगों से युक्त होने पर ही धर्म की वृद्धि होती है।)''
 
==धर्मसर्वस्वम्==
जिस नैतिक नियम को आजकल 'गोल्डेन रूल' या 'एथिक आफ रेसिप्रोसिटी' कहते हैं उसे भारत में प्राचीन काल से मान्यता है। सनातन धर्म में इसे 'धर्मसर्वस्वम्" (=धर्म का सब कुछ) कहा गया है:
 
: '''श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चाप्यवधार्यताम्।'''
: '''आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।।''' (पद्मपुराण, शृष्टि 19/357-358)
 
('''अर्थ:''' धर्म का सर्वस्व क्या है , सुनो ! और सुनकर इसका अनुगमन करो । जो आचरण स्वयं के प्रतिकूल हो , वैसा आचरण दूसरों के साथ नहीं करना चाहिये । )
 
==वाह्य सूत्र==