"अल बेरुनी": अवतरणों में अंतर

छो Robot: Removing sa:अल बेरुनी (deleted)
No edit summary
पंक्ति 1:
{{unreferenced}}
 
'''अबु रेहान मुहम्मद बिन अहमद अल-बयरुनी''' ([[फ़ारसी]]-[[अरबी]] : ابوریحان محمد بن احمد بیرونی ''यानि अबू रयहान, पिता का नाम अहमद अल-बरुनी'') या '''अल बेरुनी''' ([[973]]-[[1048]]) एक फ़ारसी विद्वान लेखक, वैज्ञानिक, धर्मज्ञ तथा विचारक था । अल बेरुनी की रचनाएँ [[अरबी भाषा]] में हैं पर उसे अपनी मातृभाषा फ़ारसी के अलावा कम से कम तीन और भाषाओं का ज्ञान था - [[सीरियाई]], [[संस्कृत]], [[यूनानी]] । वो [[भारत]] और [[श्रीलंका]] की यात्रा पर 1017-20 के मध्य आया था । [[ग़ज़नी]] के [[महमूद ग़ज़नवी|महमूद]], जिसने भारत पर कई बार आक्रमण किये, के कई अभियानों में वो सुल्तान के साथ था । अलबरुनी को [[भारतीय इतिहास]] का पहला जानकार कहा जाता था ।
{{unreferenced}}
 
== जीवन ==
{{unreferenced}}
[[अब्बासी]] शासन के पतनोन्मुख दिनों में उसका जन्म [[ख्वारज़्म]] में सन् 973 में हुआ था । यह स्थान अब [[उज़्बेकिस्तान]] में है । उसने [[गणित]] और [[खगोलविज्ञान]] अबू नस्र मंसूर से सीखी । वे [[अवेसिन्ना]] के साथी थे । [[अफ़ग़ानिस्तान]] और दक्षिण एशिया की यात्रा पर वो महमूद गज़नवी के साथ उसके काफ़िले में गया । भारत में रहते हुए उसने भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया और 1030 में तारीख़-अल-हिन्द (भारत के दिन) नामक क़िताब लिखी । उसकी मृत्यु ग़ज़नी, अफ़ग़ानिस्तान (उस समय इसे अफ़गानिस्तान नहीं कहा जाता था बल्कि फ़ारस का हिस्सा कहते थे) में हुई ।
 
{{unreferenced}}
 
'''अबु रेहान मुहम्मद बिन अहमद अल-बयरुनी''' ([[फ़ारसी]]-[[अरबी]] : ابوریحان محمد بن احمد بیرونی ''यानि अबू रयहान, पिता का नाम अहमद अल-बरुनी'') या '''अल बेरुनी''' ([[973]]-[[1048]]) एक फ़ारसी विद्वान लेखक, वैज्ञानिक, धर्मज्ञ तथा विचारक था । अल बेरुनी की रचनाएँ अरबी भाषा में हैं पर उसे अपनी मातृभाषा फ़ारसी के अलावा कम से कम तीन और भाषाओं का ज्ञान था - [[सीरियाई]], [[संस्कृत]], [[यूनानी]] । वो [[भारत]] और [[श्रीलंका]] की यात्रा पर 1017-20 के मध्य आया था । [[ग़ज़नी]] के [[महमूद ग़ज़नवी|महमूद]], जिसने भारत पर कई बार आक्रमण किये, के कई अभियानों में वो सुल्तान के साथ था । अलबरुनी को [[भारतीय इतिहास]] का पहला जानकार कहा जाता था ।
 
== जीवन ==
[[अब्बासी]] शासन के पतनोन्मुख दिनों में उसका जन्म ख्वारज़्म में सन् 973 में हुआ था । यह स्थान अब [[उज़्बेकिस्तान]] में है । उसने [[गणित]] और [[खगोलविज्ञान]] अबू नस्र मंसूर से सीखी । वे [[अवेसिन्ना]] के साथी थे । [[अफ़ग़ानिस्तान]] और दक्षिण एशिया की यात्रा पर वो महमूद गज़नवी के साथ उसके काफ़िले में गया । भारत में रहते हुए उसने भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया और 1030 में तारीख़-अल-हिन्द (भारत के दिन) नामक क़िताब लिखी । उसकी मृत्यु ग़ज़नी, अफ़ग़ानिस्तान (उस समय इसे अफ़गानिस्तान नहीं कहा जाता था बल्कि फ़ारस का हिस्सा कहते थे) में हुई ।
== रचनाएं ==
[[चित्र:Lunar eclipse al-Biruni.jpg|thumb|left|400px|चाँद की विभिन्न अवस्था को दर्शाती अलबेरुनी की ये क़िताब दसवी-ग्यारहवीं सदी में लिखी गई थी । यहाँ सूरज को [[फ़रसी-अरबी लिपि]] में ''आफ़ताब'' लिखा गया है]]
Line 19 ⟶ 14:
* [[अल नजूम]]
 
== फ़लसफ़ादर्शन ==
अल-बरुनी चिकित्सा विशेषज्ञ था और भाषाओं पर भी अच्छा अधिकार रखता था। इसके साथ ही वह एक मशहूर गणितज्ञ, भूगोलवेत्ता, कवि, रसायन वैज्ञानिक और दार्शनिक भी था। अल-बरुनी को डिजिटल साइंस पर भी पूरी तरह कमाल हासिल था। उन्होने ही ज़मीनधरती की त्रिज्या नापने का एक आसान फार्मूला पेश किया। बरुनी ने ये भी साबित किया केकि रोशनीप्रकाश कीका रफ़्तारवेग आवाजध्वनि कीके रफ़्तारवेग से ज़्यादाअधिक होती है। बैरूनी को खगोलशास्त्र में उनके सराहनीय योगदान के लिए “खगोलशास्त्र का पिता” भी कहा जाता है।
 
== महत्व ==