"एकलव्य": अवतरणों में अंतर

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कथा के अनुसार एकलव्य ने गुरुदक्षिणा के रूप में अपना अँगूठा काटकर द्रोणाचार्य को दे दिया था। इसका एक सांकेतिक अर्थ यह भी हो सकता है कि एकलव्य को अतिमेधावी जानकर द्रोणाचार्य ने उसे बिना अँगूठे के धनुष चलाने की विशेष विद्या का दान दिया हो। कहते हैं कि अंगूठा कट जाने के बाद एकलव्य ने [[तर्जनी]] और [[मध्यमा]] अंगुली का प्रयोग कर तीर चलाने लगा। यहीं से तीरंदाजी करने के आधुनिक तरीके का जन्म हुआ। निःसन्देह यह बेहतर तरीका है और आजकल तीरंदाजी इसी तरह से होती है। वर्तमान काल में कोई भी व्यक्ति उस तरह से तीरंदाजी नहीं करता जैसा कि अर्जुन करता था। <ref>{{cite web |url= http://74.125.153.132/search?q=cache:d8Lv_MR3W6YJ:btc.wapka.mobi/site_124.xhtml+%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%BE+%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%82%E0%A4%A0%E0%A5%87+%E0%A4%95%E0%A5%87+%E0%A4%A7%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE+%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%81&cd=1&hl=hi&ct=clnk|title=महाभारत की कथाएँ – एकलव्य की गुरुभक्ति|accessmonthday=[[२२ दिसंबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=|publisher=निषादराज एड्युकेशनल ग्रुप|language=}}</ref>
 
== संदर्भ ==
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{{महाभारत}}
 
 
 
[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]
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[[en:Ekalavya]]
[[id:Ekalawya]]
[[jv:Ekalawya]]
[[kn:ಏಕಲವ್ಯ]]
[[ml:ഏകലവ്യൻ]]