"सुदर्शनाचार्य": अवतरणों में अंतर

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गोस्वामी [[तुलसीदास]] के वचनों को हृदयंगम करते हुए उन्होंने [[भानगढ़]] के बीहड़ जंगलों में बारह वर्षो तक कठोर तपस्या की। तपस्या के दौरान उन्हें तन्त्र-मन्त्रों की प्रत्यक्ष अनुभूति हुई। इस प्रकार लोकोपकार की उदात्त भावना लेकर वे सांसारिक जीवों के बीच जा पहुँचे।
==सिद्धदाता आश्रम की स्थापना==
परोपकारी सन्त परिवेष में घूमते घामते अरावली पर्वतमाला पर [[फरीदाबाद]] के समीप तव्यास पहाड़ी पर आश्रम निर्माण के लिये प्रवृत्त हुए। 1989 में यह महत्वपूर्ण कार्य प्रारंम्भ हुआ। इस भूखण्ड के अधिग्रहण के विषय में भी एक रोचक किन्तु भावपूर्ण किंवदन्ती जुड़ी हुई है। फरीदाबाद से दिल्ली की ओर जाते समय अचानक गाड़ी रुकने के कारण जून की प्रचण्ड दोपहरी में उन्हें अचानक जल का चमकता हुआ स्रोत दिखाई दिया। वाहन रोक कर निरीक्षण बुद्धि से देखने पर कुछ भी दिखाई नही दिया। परन्तु कुछ अव्यक्त वाणी सुनाई दी, जिसे प्रमाण मानकर उन्होंने उसी स्थान पर आश्रम बनाने की इच्छा प्रकट की। इसे कार्यरूप देने के लिये प्रारम्भिक गतिरोध के बावजूद वे इस महान कार्य में सफल हुए और आश्रम निर्माण का कार्य सम्पन्न हुआ।
 
इसके बाद में भगवदाज्ञा को स्वीकार करते हुए श्री लक्ष्मीनारायण दिव्यधाम निर्माण का कार्य 1996 के विजयादशमी के पावन पर्व पर आरम्भ किया गया। प्रारम्भिक गतिरोध के बाद इस कार्य में भी वे सफल हुए और दिव्यधाम के निर्माण का कार्य सम्पन्न हुआ। महाराज जी के अहर्निश अनथक परिश्रम एवं सभी भक्तजनों द्वारा की गई कार सेवा के परिणामस्वरूप चार वर्ष के अत्यल्प समय में ऐसे तीर्थ स्थल का निर्माण किया गया, जिसके दर्शन मात्र से अनन्त काल तक श्रद्धालु पुण्य लाभ प्राप्त कर जीवन सफल बनाते रहेंगे। यहाँ पर समस्त भक्तजनों की श्रद्धानुसार सभी मनोकामनाएँ धर्म, अर्थ; काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
 
==बाहरी कड़ियाँ==