"लाइकेन": अवतरणों में अंतर

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'''लाइकेन''' (Lichen) निम्न श्रेणी की ऐसी छोटी वनस्पतियों का एक समूह है, जो विभिन्न प्रकार के आधारों पर उगे हुए पाए जाते हैं। इन आधारों में वृक्षों की पत्तियाँ एवं छाल, प्राचीन दीवारें, भूतल, चट्टान और शिलाएँ मुख्य हैं। यद्यपि ये अधिकतर धवल रंग के होते हैं, तथापि लाल, नारंगी, बैंगनी, नीले एवं भूरे तथा अन्य चित्ताकर्षक रंगों के लाइकेन भी पाए जाते हैं। इनकी वृद्धि की गति मंद होती है एंव इनके आकार और बनावट में भी पर्याप्त भिन्नता रहती है।
 
== परिचय ==
[[चित्र:Flechte auf Fels.jpg|right|thumb|300px|विभिन्न रंग के लाइकेन पाये जाते हैं।]]
इन पौधों का वानस्पतिक शरीर एक थैलस (thallus) होता है, जो पूर्णतया जड़, पत्ती और शाखारहित हेता है। लाइकेनों के समुदाय को मुख्यत: तीन प्रकार के थैलस में विभाजित किया जा सकता है :
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कवक के भाग और स्वरूप के अनुसार लाइकेन को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है :
 
(1) ऐस्कोलाइकेनीज़ (Ascolichenes) - इसमें कवक भाग ऐस्कोमाइसिटीज़ वर्ग का एकक होता है।
 
(2) बासिडियोलाइकेनीज़ (Basidiolichenes) - इसमें कवक भाग बासिडियोमाइसिटीज़ वर्ग का एकक होता है।
 
ऐस्कोलाइकेन को उसी फलकाय की बनावट पर फिर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: (1) पलिधकाय (pyrenocarpeae), जिसमें फलकाय पेरीथीसियम (perithecium) तथा (2) विवृतकाय, (gymnocarpeae), जिसमें फलित भाग विवृतकाय ऐपोथीसियम (apothecium) होता है।
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कुछ वनस्पतिज्ञों के विचारों के अनुसार यह परस्पर लाभ का संबंध होते हुए भी एक के लिए हानिकारक है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह परजीविता का उदाहरण है, जिसमें शैवाल भाग कवक के द्वारा पीड़ित होता है।
 
== जनन ==
लाइकेन का कोई भी पृथक् हुआ भाग उचित वातावरण में स्वंत्रतापूर्वक बढ़ सकता है। कुछ लाइकेन जनन के लिए एक विशेष प्रकार के अंग बनाते हैं, जिन्हें सोरिडिया (Soridia) कहते हैं। ये थैलस के छोटे छोटे भाग होते हैं, जिनमें एक या दो शैवाल कोशिकाएँ कवक तंतुओं द्वारा आवरित होती हैं। यह पैतृक थैलसों से टूटने के पश्चात् वायु, वर्षा या जंतुओं द्वारा उचित वातावरण में पहुँचकर नवीन पौधे बनाते हैं। इनके लाइकेन के दोनों संघटक शैवाल तथा कवक की संतुलित वृद्धि होती है।
 
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अनुरूप अवस्था में धानीबीजाणु अंकुरित होकर, एक सूत्र को जन्म देते हैं और यदि यह सूत्र किसी ऐसी शैवाल कोशिकाओं के समीप आ जाए जिनसे यह लाइकेन से संबंधित था तो एक नए लाइकेन थैलस का संश्लेषण हो जाता है। यदि उगते हुए कवक जाल को अनुकूल शैवाल नहीं मिलता, तो इसकी मृत्यु हो जाती है। इस कारण यह संदिग्ध है कि धानीबीजाणु लाइकेन के संवर्धन में महत्वपूर्ण कार्य करते हैं, या नहीं। यह संभव है कि लाइकेन जनन में खंडन (fragmentation) तथा सोरीडेम (Soredem) का बनना अधिक कार्यसाधक हो।
 
== आर्थिक महत्व ==
लाइकेन प्रकृति तथा मनुष्य के जीवन में एक प्रमुख कार्य करते हैं। ये वनस्पतियों और उचित भूमि (¨ÉÞnùÉ) निर्माण के आविष्कर्ता हैं। कड़ी और नंगी चट्टानों पर उगनेवाली पहली वनस्पति पर्पटीमय लाइकेन है। पर्पटीमय लाइकेन अपने द्वारा निर्मित अम्लों की सहायता से चट्टानों के लावों को अपने अवशिष्ट के साथ मिलाकर एक प्रकार की मिट्टी बनाते हैं, जो हरिता के बीजाणु के लिए अभिजनन स्थान बनता है और फिर पुष्पीय वनस्पतियों से इसका उपनिवेशन हो जाता है।
 
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कुछ लाइकेनों में [[टैनिन]] होता है, जो पशुओं की कच्ची खाल पकाने में प्रयुक्त होता है। लाइकेन की कुछ जातियों में सुहावनी गंध होती है, इस कारण वे सुगंध और साबुन बनाने के काम में लाए जाते हैं।
 
लाइकेन हमारे लिए अपने अगणित गुणों के कारण बड़े उपयोगी हैं। इनकी अनुपस्थिति से पृथ्वी का एक बड़ा भाग निस्संदेह बंजर एवं निर्जीव होता तथा कोई बनस्पति भी नहीं होती।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://bugs.bio.usyd.edu.au/Mycology/Plant_Interactions/Lichen/lichenBiology.shtml University of Sydney lichen biology]
* [http://www.nlnature.com Memorial University's NL Nature project, focusing primarily on lichens]
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[[it:Lichene]]
[[ja:地衣類]]
[[jv:Lumut Kerak]]
[[ka:ლიქენები]]
[[kn:ಕಲ್ಲುಹೂವು (ಲೈಕನ್‌ಗಳು)]]