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[[Fileचित्र:Persian warriors from Berlin Museum.jpg|thumb|right|360px|सुसा में दारुश (दारा) के महल के बाहर बने "अमर सेनानी"। यह उपाधि कुछ चुनिन्दा सैनिकों को दी जाती थी जो महल रक्षा तथा साम्राज्य विस्तार में प्रमुख माने जाते थे । ]]
 
[[ईरान]] का पुराना नाम [[फ़ारस]] है और इसका इतिहास बहुत ही नाटकीय रहा है जिसमें इसके पड़ोस के क्षेत्र भी शामिल रहे हैं । इरानी इतिहास में साम्राज्यों की कहानी ईसा के ६०० साल पहले के [[हख़ामनी]] शासकों से शुरु होती है । इनके द्वारा [[पश्चिम एशिया]] तथा [[मिस्र]] पर ईसापूर्व 530 के दशक में हुई विजय से लेकर अठारहवीं सदी में [[नादिरशाह]] के भारत पर आक्रमण करने के बीच में कई साम्राज्यों ने फ़ारस पर शासन किया। इनमें से कुछ फ़ारसी सांस्कृतिक क्षेत्र के थे तो कुछ बाहरी। फारसी सास्कृतिक प्रभाव वाले क्षेत्रों में आधुनिक ईरान के अलावा [[इराक]] का दक्षिणी भाग, [[अज़रबैजान]], पश्चिमी [[अफगानिस्तान]], [[ताजिकिस्तान]] का दक्षिणी भाग और पूर्वी [[तुर्की]] भी शामिल हैं। ये सब वो क्षेत्र हैं जहाँ कभी फारसी सासकों ने राज किया था और जिसके कारण उनपर फारसी संस्कृति का प्रभाव पड़ा था।
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[[चित्र:Sassanid_Empire_620.png|thumb|right|540px|सासानी वंश का विस्तार - ६१० इस्वी में ।]]
इसके बाद फारस की सत्ता पर किसी एकमात्र शासक का प्रभुत्व नहीं रहा। हालाँकि रोमनों ने [[दज़ला नदी]] (टिगरिस) के पूर्व कभी भी अपना प्रभाव नहीं बढ़ाया पर फारसी शासक रोमनों के मुकाबले दबे ही रहे ।
[[Fileचित्र:Relief of Shapur I capturing Valerian.jpg|thumb|left|400px|शापुर प्रथम के सामने हारा रोमन शासक [[वेलेरियन]] और साथ में [[फ़िलिप अरबी]] ]]
पर तीसरी सदी के बाद से सासानी शक्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई। इस वंश की स्थापना अर्दाशिर प्रथम ने सन् २२४ में पार्थियन शासक अर्दवन को हराकर की । उन्होंने [[रोमन साम्राज्य]] को चुनौती दी और कई सालों तक उनपर आक्रमण करते रहे। सन् २४१ में [[शापुर]] ने रोमनों को मिसिको के युद्ध में हराया। २४४ इस्वी तक अर्मेनिया फारसी नियंत्रण में आ गया। इसके अलावा भी पार्थियनों ने रोमनों को कई जगहों पर परेशान किया सन् २७३ में शापुर की मृत्यु हो गई। सन् २८३ में रोमनों ने फारसी क्षेत्रों पर फिर से आक्रमण कर दिया। इसके फलस्वरूप अर्मेनिया के दो भाग हो गए - रोमन नियंत्रण वाले और फारसी नियंत्रण वाले। शापुर के पुत्रों को और भी समझौते करने पड़े और कुछ और क्षेत्र रोमनों के नियंत्रण में चले गए। सन् ३१० में शापुर द्वितीय गद्दी पर युवावस्था में बैठा। उसने ३७९ इस्वी तक शासन किया। उसका शासन अपेक्षाकृत शांत रहा। उसने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई। उसके उत्तराधिकारियों ने वही शांति पूर्ण विदेश नीति अपनाई पर उनमें सैन्य सबलता की कमी रही। आर्दशिर द्वितीय, शापुर तृतीय तथा बहराम चतुर्थ सभी संदिग्ध अवस्था में मारे गए। उनके वारिस यज़्देगर्द ने रोमनों के साथ शांति बनाए रखा। उसके शासनकाल में रोमनों के साथ सम्बंध इतने शांतिपूर्ण हो गए कि पूर्वी रोमन साम्राज्य के शासक अर्केडियस ने यज़्देगर्द को अपने बेटे का अभिभावक बना दिया। उसके बाद बहरम पंचम शासक बना जो जंगली जानवरों के शिकार का शौकीन था। वो ४३८ इस्वी के आसपास एक जंगली खेल देखते वक्त लापता हो गया जिसके बाद उसके बारे में कुछ पता नहीं चल सका।
 
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== इस्लाम का उदय और अरब ==
[[Fileचित्र:Map of expansion of Caliphate.svg|400px|thumb|मुस्लिम साम्राज्य विस्तार के कालक्रम {{legend|#a1584e|पैग़म्बर मुहम्मद के नेतृत्व में, 622–632}} {{legend|#ef9070|[[राशिदुन]] ख़िलाफ़त के दौरान, 632–661}} {{legend|#fad07d|[[उमय्यद]] ख़िलाफ़त, 661–750}}]]
{{main|इस्लाम का उदय}}
इसी समय [[अरब]], [[मुहम्मद साहब]] के नेतृत्व में काफी शक्तिशाली हो गए थे। सन् ६३४ में उन्होने ग़ज़ा के निकट बेजेन्टाइनों को एक निर्णायक युद्ध में हरा दिया। फारसी साम्राज्य पर भी उन्होंने आक्रमण किए थे पर वे उतने सफल नहीं रहे थे। सन् ६४१ में उन्होने हमादान के निकट यज़्देगर्द को हरा दिया जिसके बाद वो पूरब की तरफ़ सहायता याचना के लिए भागा पर उसकी मृत्यु मर्व में सन् ६५१ में उसके ही लोगों द्वारा हुई। इसके बाद अरबों का प्रभुत्व बढ़ता गया। उन्होंने ६५४ में खोरासान पर अधिकार कर लिया और ७०७ ईस्वी तक बाल्ख।
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मुहम्मद साहब की मृत्यु के उपरांत उनके वारिस को [[ख़लीफा]] कहा जाता था जो इस्लाम का प्रमुख माना जाता था। चौथे खलीफा अली, मुहम्मद साहब के फरीक थे और उनकी पुत्री फ़ातिमा के पति। पर उनके खिलाफत को चुनौती दी गई और विद्रोह भी हुए। सन् ६६१ में अली की हत्या कर दी गई। इसके बाद उम्मयदों का प्रभुत्व इस्लाम पर हो गया। सन् ६८० में [[करबला]] में अली के दूसरे पुत्र हुसैन ने उम्मयदों के खिलाफ़ बगावत की पर उनको एक युद्ध में मार दिया गया। इसी दिन की याद में शिया मुसलमान महुर्रम मनाते हैं। इस समय तक इस्लाम दो खेमे में बट गया था - उम्मयदों का खेमा और अली का खेमा। जो उम्मयदों को इस्लाम के वास्तविक उत्तराधिकारी समझते थे वे सुन्नी कहलाए और जो अली को वास्तविक खलीफा (वारिस) मानते थे वे शिया। सन् ७४० में उम्मयदों को तुर्कों से मुँह की खानी पड़ी। उसी साल एक फारसी परिवर्तित - अबू मुस्लिम - ने उम्मयदों के खिलाफ़ मुहम्मद साहब के वंश के नाम पर उम्मयदों के खिलाफ एक बड़ा जनमानस तैयार किया। उन्होंने सन् ७४९-५० के बीच उम्मयदों को हरा दिया और एक नया खलीफ़ा घोषित किया - अबुल अब्बास। अबुल अब्बास अली और हुसैन का वंशज तो नही पर मुहम्मद साहब के एक और फरीक का वंशज था। उससे अबु मुस्लिम की बढ़ती लोकप्रियता देखी नहीं गई और उसको ७५५ इस्वी में फाँसी पर लटका दिया। इस घटना को शिया इस्लाम में एक महत्त्वपूर्ण दिन माना जाता है क्योंकि एक बार फिर अली के समर्थकों को हाशिये पर ला खड़ा किया गया था। अबुल अब्बास के वंशजों ने कई सदियों तक राज किया। उसका वंश [[अब्बासी वंश]] (अब्बासिद) कहलाया और उन्होंने अपनी राजधानी [[बगदाद]] में स्थापित की। उनका शासन अरब और पश्चिम एशियाई सेना तथा फ़ारसी साहित्य के प्रभाव के सम्मिलमन से बना । अरबी भाषा में विज्ञान, चिकित्सा तथा ज्योतिष के कई अविस्मरणीय योगदान ईरानियों ने मुख्यतः अरबी भाषा में किया । दसवीं सदी में पश्चिम एशिया के ईरानी मूल के बुवाई शासकों ने बग़दाद पर आक्रमण कर उसे हरा दिया और इस तरह अब्बसी ख़िलाफ़त की श्रेष्ठता पर विराम लगा दिया ।
====छोटे साम्राज्यों और विदेशी आक्रमण का काल====
[[Fileचित्र:Iran circa 1000AD.png|thumb|right|400px|सन् 1000 के आसपास का ईरान]]
सन् 920 में उत्तर-पूर्वी फ़ारस के ख़ोरासान में सामानी साम्राज्य का उदय हुआ । सामानी शासकों ने फारसी भाषा के विकास के प्रयास किये । इस्लाम के आगमन के बाद यह पहला मौका था जब किसी शासक ने ईरानी (या ग़ैर-अरबी) भाषा के विकास के प्रोत्साहन दिये ।
उत्तर से सल्जूक तुर्क और उत्तरपूर्व से [[ग़जनवी]] शासकों ने ईरान पर कुछ समय के लिए आंशिक रूप से अधिकार किया । तेरहवी सदी में उस समय अमुस्लिम रहे [[मंगोल|मंगोलों]] के आक्रमण के बाद बगदाद का पतन हो गया और ईरान में फिर से कुछ सालों के लिए राजनैतिक अराजकता छाई रही। डेढ़ सौ सालों के बाद ईरान में [[तैमूर लंग]] का भी आक्रमण हुआ । इस दौरान कविता और सूफ़ी विचारधारा का बहुत विकास हुआ ।