"ऊष्मा": अवतरणों में अंतर
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इस उपशाखा में ऊष्मा ताप और उनके प्रभाव का वर्णन किया जाता है। प्राय: सभी द्रव्यों का आयतन तापवृद्धि से बढ़ जाता है। इसी गुण का उपयोग करते हुए तापमापी बनाए जाते हैं।
==तापमान==
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==ऊष्मा के प्रभाव==
ऊष्मा के प्रभाव से पदार्थ में कई बदलाव आते हैं जो यदा कदा स्थाई होते है और कभी-कभी अस्थाई ।
* [[ऊष्मीय प्रसार]] - गर्म करने पर ठोस, द्रव या गैस के आकार में विस्तार होता है । पर वापस ठंढा करने पर ये प्रायः उसी स्वरूप में आ जाते हैं । इस कारण से इनके घनत्व में भी बदलाव आता है ।
* '''अवस्था में परिवर्तन''' - [[ठोस]] अपने [[द्रवानांक]] पर [[द्रव]] बन जाते हैं तथा अपने [[क्वथनांक]] पर द्रव [[गैस]] बन जाते हैं । यह क्वथनांक तथा द्रवनांक ठोस तथा द्रव के कुल दाब पर निर्भर करता है । कुल दाब के बढ़ने से क्वथनांक तथा द्रवनांक भी बढ़ जाते हैं ।
* '''विद्युतीय गुणों में परिवर्तन''' - तापमान बढाने पर यानि गर्म करने पर किसी वस्तु की प्रतिरोधक क्षमता (Resistivity) जैसे गुणों में परिवर्तन आता है । कई [[डायोड]] तथा [[ट्रांज़िस्टर]] उच्च तापमान पर काम करना बंद कर देते हैं ।
* '''रसायनिक परिवर्तन''' - कई अभिक्रियाएं तापमान के बढ़ाने से तेज हो जाती हैं । उदाहरण स्वरूप 840<sup>0</sup>C पर [[चूनापत्थर]] का विखंडन -
CaCO<sub>3</sub> → CaO + CO<sub>2</sub>
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'''ऊष्मा का स्थानांतरण''' तीन विधियों से होता है [[चालन]], [[संवहन]] और [[विकिरण]]। पहली दो विधियों में द्रव्यात्मक माध्यम की आवश्यकता है, किंतु विकिरण की विधि में विद्युच्चुंबकीय तरंगों द्वारा ऊष्मा का अंतरण होता है।
ऊष्मा की एक उपशाखा [[अणुगति सिद्धांत]] (Kinetic Theory) है। इस सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमात्र लघु अणुओं के द्वारा निर्मित हैं। गैसों के संबंध में यह बहुत महत्वपूर्ण
[[ऊष्मागतिकी]] का अधिक भाग दो नियमों पर आधारित है। ''ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम''', [[ऊर्जा संरक्षण नियम]] का ही दूसरा रूप है। इसके अनुसार ऊष्मा भी ऊर्जा का ही रूप है। अत: इसका रूपांतरण तो हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। जूल इत्यादि ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि इन दो प्रकार की ऊर्जाओं में रूपांतरण में एक कैलोरी ऊष्मा 4.18 व 107 अर्ग यांत्रिक ऊर्जा के तुल्य होती है इंजीनियरों का मुख्य उद्देश्य ऊष्मा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतर करके इंजन चलाना होता है। प्रथम नियम यह तो बताता है कि
[[ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम]] यह कहता है कि ऐसा संभव नहीं और एक ही ताप की वस्तु से यांत्रिक ऊर्जा की प्राप्ति नहीं हो सकती। ऐसा करने के लिये एक निम्न तापीय पिंड ([[संघनित्र]]) की भी आवश्यकता होती है। किसी भी इंजन के लिये उच्च तापीय भट्ठी से प्राप ऊष्मा के एक अंश को निम्न तापीय पिंड को देना आवश्यक है। शेष अंश ही यांत्रिक कार्य में काम आ सकता है। समुद्र के पानी स ऊष्मा लेकर उससे जहाज चलाना इसलिये संभव नहीं कि वहाँ पर सर्वत्र समान ताप है और कोई भी निम्न तापीय वस्तु मौजूद नहीं। इस नियम का बहुत महत्व है। इसके द्वारा ताप के परम पैमाने की संकल्पना की गई है। दूसरा नियम परमाणुओं की गति की अव्यवस्था (disorder) से संबंध रखता है। इस अव्यवस्थितता को मात्रात्मक रूप देने के लिये एंट्रॉपि (entropy) नामक एक नवीन भौतिक राशि की संकल्पना की गई है। उष्मागतिकी के दूसरे नियम का एक पहलू यह भी है। कि प्राकृतिक भौतिक क्रियाओं में एंट्रॉपी की सदा वृद्धि होती है। उसमें ह्रास कभी नहीं होता।
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==यह भी देखें ==
* [[उष्मागतिकी]]
[[श्रेणी:भौतिकी]]
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