"कलिल": अवतरणों में अंतर
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जेलियों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है: प्रत्यास्थ तथा दृढ़। प्रत्यास्थ जेलियाँ साधारणत: जिलेटिन, ऐगर आदि प्राकृतिक कलिलों से बनती हैं, किंतु अधिकांश अकार्बनिक जेलियाँ, जिनमें सिलिसिक अम्ल भी रहता है, दृढ़ व्यवहार दिखाती हैं। कुछ जेलियों का स्वभाव विचित्र होता है। वे हिलाने पर, आंदोलित करने पर या कर्णातीत तरंगों के प्रभाव से पुन: सौल में परिवर्तित हो जाती हैं। किंतु यदि अब उन्हें स्थिर रख दिया जाए तो वे फिर जेली बन जाती हैं। यह क्रिया कई बार दुहराई जा सकती है। इस क्रिया को स्पर्शबोध (थिक्सोट्रॉपी, thixotropy) कहते हैं।
जलप्रेमी कलिलों में प्रोटीनों के सौलों पर विशेष खोजें हुई हैं। इसका कारण है इनका शरीरिक रसायन शास्त्र में महत्व। प्रोटीनों के जो सौल प्राकृतिक अवस्था में पाए जाते हैं वे साधारणत: ऋणात्मक आवेशवाले होते हैं। अधिकांश सौल अम्लीय बनाए जाने पर धनात्मक आवेश प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार एक विशेष पी एच पर प्रोटीन के सौल पर कोई भी आवेश नहीं होगा। इसे समविद्युत् विंदु (आइसो-इलेक्ट्रिक-प्वाइंट, Iso-electric point) कहते हैं। इसी से प्रोटीन की पहचान हाती है। रासायनिक गुणों में प्राचीन उभयधर्मी (एंफ़ोटेरिक, amphoteric) होता है क्योंकि इसमें (NH2) और
==उपयोग==
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==इन्हें भी देखेँ==
== बाहरी कड़ियाँ ==
[[श्रेणी:रासायनिक पदार्थ]]
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