"श्रमिक वर्ग": अवतरणों में अंतर
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'''कामगार वर्ग''' (या '''निम्न वर्ग''' , '''श्रमिक वर्ग''' ) एक ऐसा शब्द है, जिसका उपयोग सामाजिक विज्ञानों और साधारण बातचीत में वैसे लोगों के वर्णन के लिए होता है, जो निम्न स्तरीय कार्यों (दक्षता, शिक्षा और निम्न आय द्वारा मापदंड पर) में लगे होते हैं और अक्सर इस अर्थ का विस्तार [[बेकारी|बेरोजगारी]] या औसत से नीचे आय वाले लोगों तक भी होता है. कामगार वर्ग मुख्यत: औद्योगीकृत [[अर्थव्यवस्था|अर्थव्यवस्थाओं]] और गैर-औद्योगीकृत अर्थव्यवस्थाओं वाले शहरी क्षेत्रों में पाये जाते हैं.
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सामाजिक वर्ग के वर्णन में कई तरह के शब्दों का उपयोग किया जाता है, मगर ''कामगार वर्ग'' को विभिन्न तरीकों से परिभाषित और प्रयुक्त किया जाता है. जब इसका प्रयोग गैर-अकादमिक रूप में होता है तो यह आमतौर पर समाज के एक खंड को संदर्भित करने के लिए होता है, जो शारीरिक श्रम पर आश्रित है, खासतौर पर जिन्हें घंटे के आधार पर मजदूरी दी जाती है. शैक्षिक वार्तालाप में इसका प्रयोग विवादास्पद रहा है, विशेष रूप से उत्तर-औद्योगीकृत समाजों में मानव श्रम में गिरावट के बाद. कुछ शिक्षाविद कामगार वर्ग की अवधारणा की उपयोगिता पर सवाल उठाते हैं.
यह शब्द आमतौर पर आर्थिक संसाधन, [[
इसका प्रयोग एकांतर रूप से अपमानजनक हो सकता है या ''कामगार वर्ग'' के रूप में स्व-पहचान रखने वाले लोगों में गर्व का भाव व्यक्त कर सकता है.
==परिभाषाएं==
सामाजिक वर्गों की परिभाषाएं बहुत सारे समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्यों को प्रतिबिंबत करती हैं, जिन्हें [[मानवशास्त्र|नृविज्ञान]], [[
===मार्क्सवादी परिभाषाएं===
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''[[कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र|कम्युनिस्ट घोषणापत्र]]'' में मार्क्स ने तर्क दिया कि यह सर्वहारा वर्ग की नियति है कि वह अपनी तानाशाही से [[पूंजीवाद|पूंजीवादी]] प्रणाली को विस्थापित करे, वर्ग प्रणाली के समर्थन में सामाजिक संबंधों को खत्म करे और तब भविष्य के एक कम्युनिस्ट समाज को स्थापित करे, जिसमें "प्रत्येक के मुक्त विकास के लिए सभी का मुक्त विकास एक शर्त है." ''[[दास कैपिटल|कैपिटल]]'' में, मार्क्स ने उन तरीको को विभाजित किया है, जिससे पूंजी ज्ञानोदय के ऐसे क्रांतिकारी विस्तार को रोक सकती है. कामगार वर्ग की सदस्यता के बारे में मार्क्सवादी तर्कों के कुछ मुद्दों को निम्नांकित रूप में शामिल किया गया है:
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*जाति, लिंग और वर्ग सामाजिक स्तरीकरण श्रेणियों के लिए अतिव्यापी हैं. पूंजीपतियों के लिए यह संभव है कि पूंजीवादी उद्देश्यों को पाने के लिए जाति, लिंग और वर्ग के सदस्यों को रणनीतिक रूप से स्थानापन्न कर कर सकते हैं, लेकिन एक बार ये स्तरीकृत श्रेणियां बन जाती हैं और लागू हो जाती है तो सदस्यता अनुभवों और हितों को विभाजित करती है.
सामान्य तौर पर मार्क्सवादी दृष्टि में दिहाड़ी मजदूर और कल्याणकारी राज्य पर निर्भर रहने वाले ही कामगार वर्ग हैं और जो उस जमा पूंजी के जरिये जीते हैं और/या श्रम का शोषण करते हैं, वे कामगार नहीं हैं. इस व्यापक विरोधाभास [[
पूंजीवादी व्यवस्था के भीतर मुख्य पूंजीपतियों की स्थिति करीब-करीब उतनी विरोधाभासी नहीं है. पूंजीपति अपनी आय, धन, हैसियत और ताकत उत्पादन के साधनों के स्वामित्व से हासिल करते हैं और उन्हें अपने स्वयं के अभ्युदय के लिए इसे प्रबंधित करना पड़ता है. पूंजीवादी दृष्टिकोण के मुताबिक श्रमिकों के हित के लिए उत्पादन का प्रबंधन (या राजनीतिक संसाधनों का निर्माण करना, जो आर्थिक संबंधों को प्रभावित कर सके) मूर्खर्तापूर्ण हो सकता है. एक हद तक जब कभी-कभी कामगार पूंजीवाद से कुछ मायनों में लाभान्वित होते हैं, पर यह एक केंद्रीय लक्ष्य नहीं है, बल्कि एक उप-उत्पाद है. इस प्रकार कम वर्ग हित विरोधाभास और कम पहचान विरोधाभास व राजनीतिक समन्वय के लिए और अधिक संसाधनों के साथ काम करने से पूंजीवादी वर्ग के सदस्य श्रमिकों पर और उनके खिलाफ काफी क्षमतापूर्ण तरीके से अपने हितो को अक्सर समन्वित और पूरा कर सकते हैं.
==इतिहास==
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कामगार वर्ग का इतिहास दो विरोधाभासी प्रक्रियाओं द्वारा परिभाषित है, श्रमिक पैदा करने के लिए पारंपरिक समुदायों का आर्थिक विकास और बेहतर जीवन स्तर बनाने के लिए औद्योगीकरण से उपलब्ध विशाल उत्पादन अधिशेष. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान श्रमिकों ने एक औद्योगिक समाज के भीतर अपनी खुद की सांस्कृतियां और स्थितियां तैयार करने के लिए सांस्कृतिक और राजनीतिक कार्रवाई की है. इन प्रतिक्रियाओं में से कई में इस बात पर जोर दिया गया है कि कामगार वर्ग के व्यक्ति काम के अलावा अन्य प्रक्रियाओं के द्वारा परिभाषित किये जाते हैं. कामगार वर्ग का इतिहास आमतौर पर अंग्रेजी कॉमन्स की नीतियों और हॉलैंड और इंग्लैंड में कारखानों के में भुगतान वाले औद्योगिक श्रमिकों की पीढ़ी के साथ शुरू हुआ माना जाता है.
सामंती यूरोप में इस तरह का कामगार वर्ग बड़ी संख्या में मौजूद नहीं था. इसके बजाय ज्यादातर लोग श्रमिक वर्ग, विभिन्न पेशों, व्यापारों और व्यवसायों से बने समूह का हिस्सा थे. एक वकील, शिल्पकार और किसान सभी समान सामाजिक ईकाई का हिस्सा माने जाते थे और लोगों का एक तीसरा समूह था, जो न तो [[कुलीन तंत्र|अभिजात]] थे और न ही चर्च के अधिकारी थे. यूरोप से बाहर पूर्व-पूंजीवादी समाजों में समान पदानुक्रम का अस्तित्व था. इन श्रमिक वर्गों की सामाजिक स्थिति को प्राकृतिक नियम और आम धार्मिक विश्वास द्वारा आदेशित रूप में देखा गया. इस सामाजिक स्थिति को किसानों द्वारा, विशेष रूप से जर्मन किसान युद्ध के दौरान चुनौती दी गई.
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18 वीं सदी के अंत में ज्ञानोदय के प्रभाव के तहत यूरोपीय समाज परिवर्तन की स्थिति में था और यह परिवर्तन का अपरिवर्तनशील ईश्वर निर्मित सामाजिक व्यवस्था से मेल मिलाप नहीं हो सकता था. इन समाजों के सदस्यों ने ऐसी विचारधाराओं को जन्म दिया, जिसने कामगार वर्ग के लोगों की कई समस्याओं के लिए उनकी नैतिकता और आचारशास्त्र को दोषी ठहराया (जैसे शराब का अत्यधिक सेवन, कथित आलस्य और पैसा बचाने में असमर्थता). ''द मेकिंग ऑफ इंगलिश वर्किंग क्लास'' में ई.पी.थाम्पसन ने तर्क दिया है कि अंग्रेजी कामगार वर्ग अपनी स्वयं की रचना में मौजूद था, और उन्होंने उत्तर आधुनिक श्रमिक वर्गों का एक आधुनिक, राजनीतिक रूप से आत्म-सचेतन कामगार वर्ग में परिवर्तन का भी वर्णन किया है.
[[व्लाडिमिर लेनिन|व्लादिमीर लेनिन]] ने विकसित देशों में कामगार वर्ग के जीवन के निम्न स्तर को और बेहतर बनाने में [[
1917 के आसपास से जाहिरा तौर पर कई देशों ने कामगार वर्ग के हित में कदम उठाये. जबकि शैक्षणिक इतिहास और समाजशास्त्र में घटित जीवन स्तर और संभावित विकास दर पर बहस हुई, इन देशों के विकास सूचकांक अक्सर समान सकल घरेलू उत्पाद वाले अन्य देशों की तुलना में अधिक है. हालांकि, लेखकों की ओर से इन देशों की अतिरिक्त आलोचनाएं की गई, जिन्होंने प्राथमिक रूप से कामगार वर्ग पर प्रभाव डालने वाले बड़े पैमाने पर मानवाधिकार हनन की उपस्थिति और कामगार वर्ग के भीतर और उनके बीच लोकतंत्र की कमी को लेकर आलोचना की. कुछ इतिहासकारों ने उल्लेख किया है कि इन सोवियत शैली के समाजों में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन बदलाव एक व्यापक नये प्रकार के सर्वहाराकरण के जरिये हुआ, जो अक्सर किसानों और ग्रामीण कामगारों के प्रशासकीय रूप से हासिल बलात विस्थापन से प्रभावित किया गया. तब से तीन प्रमुख औद्योगिक देश अर्द्ध-बाजार-आधारित शासन (चीन, वियतनाम, क्यूबा) की ओर मुड़े और एक देश अपने भीतर गरीबी और निर्दयतावाद के चक्र (उत्तर कोरिया) को बढ़ाने में लगा. इस तरह के अन्य देश या तो पहले ही ध्वस्त (जैसे कि सोवियत संघ के रूप में) हो गये थे या औद्योगीकरण के महत्वपूर्ण स्तर या बड़े कामगार वर्ग को हासिल किया.
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*नौसिखिया
*एमबुर्जियौसिमेंट
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*संयुक्त राज्य अमेरिका में घरेलू आय
*ज्ञान कार्यकर्ता
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[[ast:Clase obrera]]
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