"जलना (चिकित्सा)": अवतरणों में अंतर
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[[शरीर]] के किसी एक या अनेक अंगों का '''जलना''' एक प्रकार की [[दुर्घटना]] है जो [[उष्मा]], [[विद्युत]], [[रसायन]], [[प्रकाश]], [[विकिरण]] या [[घर्षण]] आदि से हो सकती है। बहुत ठण्डी चीजों के सम्पर्क में आने से भी शरीर "जल" सकता है जिसे "शीत-जलन" (कोल्ड बर्न) कहते हैं। विश्व में प्रति वर्ष सहस्त्रों व्यक्ति दाह से मरते हैं और इससे बहुत अधिक संख्या में अपंग होकर समाज के भार बन जाते हैं। दाह रोग प्राय: असाध्य नहीं होता।
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शुष्क उष्मा से [[ऊतक]]विनाश, '''दाह''' (burn) और नम ऊष्मा से उत्पन्न '''छाला''' (cold burn) कहलाता है। गहराई और व्यापकता की दृष्टि से दाह विभिन्न प्रकार के होते हैं। व्यापकता के अनुसार दाह के वर्गीकरण के लिए प्रभावित क्षेत्र को समग्र देहपृष्ठ के प्रतिशत में निरूपित करते हैं। आपाती कार्य में लिए "नौ का नियम" सुविधाजनक है। तदनुसार "सिर, गर्दन" और प्रत्येक ऊपरी सिरा समग्र देहपृष्ठ का नौ प्रतिशत, सामने और पीछे का धड़ तथा प्रत्येक निचला सिरा 18 प्रतिशत और मूलाधार एक प्रतिशत होता है। एक अन्य नियमानुसार रोगी की फैली हुई हथेली समग्र शरीरपृष्ठ का एक प्रतिशत होती है।
गहराई
दाह में दाहव्यापकता का निर्धारण भी बड़े महत्व का है, क्योंकि दाहोत्तर आघात (post burns shock) शरीरपृष्ठ के दाहाक्रांत क्षेत्र के अनुपात में उत्पन्न होता है। रुधिरवाहिकाएँ विस्तारित होती हैं, उनकी दीवारों की प्रवेश्यता बढ़ जाती है और अतिरिक्त रक्तधर ऊतकों (extra vascular tissues) में प्लाविका (plasma) और विद्युद्विश्लेष्य (electrolytes) निकलते हैं। प्लाविका की हानि से संचारी रुधिर आयतन का ह्रास होता है, जिसके परिणामस्वरूप मर्मं अंगों में [[ऊतक]] [[रक्तआक्सीक्षीणता]] उत्पन्न हो जाती है और यदि शीघ्र अवमुक्त न किया जाए तो रोगी की मृत्यु तक हो सकती है। पीलापन, बेचैनी और प्यास 'आरंभी, असामान्य, रक्ताल्पता आघात' (incipient oligaemic shock) के लक्षण हैं और इनमें से किसी एक का प्रकट होना अविलंब तरल प्रयोग की आवश्यकता का संकेत करता है।
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