"षट्खण्डागम": अवतरणों में अंतर

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'''षट्खण्डागम''' (अर्थ = छ: भागों वाला धर्मग्रंथ) [[दिगम्बर]] जैन संप्रदाय का सर्वोच्च और सबसे प्राचीन पवित्र धर्मग्रंथ है। दिगंबर परंपरा के अनुसार मूल धर्मवैधानिक शास्त्र महावीर भगवान के निर्वाण के कुछ शताब्दियों के बाद ही लुप्त हो गये थे|थे। अतः, षट्खण्डागम को आगम का दर्जा दिया गया है और इसे सबसे श्रद्धेय माना गया है|है। दिगम्बरों के लिए षट्खण्डागम की अहमियत इस बात से लगायी जा सकती है, कि जिस दिन षट्खण्डागम पर [[धवला टीका]] को पूरा किया गया था, उस दिन को श्रुत पंचमी के रूप में मनाया जाता है.
कि जिस दिन षट्खण्डागम पर धवला टीका को पूरा किया गया था, उस दिन को श्रुत पंचमी के रूप में मनाया जाता है|
 
==उत्पत्ति==
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==विषय वस्तु==
षट्खण्डागम‎, जैसा की नाम से ज्ञात होता है, छह भागों में विभाजित शास्त्र है|है। छह भाग हैं-
 
१. जीव स्थान
 
२. क्षुद्रक बंध
 
३. बंधस्वामित्व
 
४. वेदना
 
५. वर्गणा
 
६. महाबंध
 
प्रथम तीन भाग कर्म दर्शन की व्याख्या आत्मा के दृष्टीकोण से करते हैं, जो की बंधन का कारक है एवं अंतिम तीन भाग कर्म की प्रकृति और सीमाओं की चर्चा करते हैं|हैं।
 
==इन्हें भी देखें==
*[[आगम (जैन)]]