"खमीर": अवतरणों में अंतर
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'''खमीर''' एक [[कवक]] है। यह [[शर्करा|शर्करायुक्त]] [[कार्बनिक पदार्थों|कार्बनिक पदार्थ]] में बहुतायत से पाये जाने वाला विशेष प्रकार का कवक है। यह फूल विहीन पौधा है। शरीर मूल, तना एवं पत्ति में विभक्त नहीं होता है। इसकी लगभग १५०० जातियाँ हैं।<ref name="YeastRef1">Kurtzman, C.P., Fell, J.W. 2006. [http://www.ars.usda.gov/research/publications/publications.htm?SEQ_NO_115=176765 "Yeast Systematics and Phylogeny — Implications of Molecular Identification Methods for Studies in Ecology."], Biodiversity and Ecophysiology of Yeasts, The Yeast Handbook, Springer. Retrieved January 7 2007.</ref>
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साधारण व्यक्ति को यीस्ट से वस्तु का बोध होता हैं कि जिसे बनाने वाले गूँधे [[आटा|आटे]] में डालकर, उसे उठने और स्पंजी बनाने के लिये छोड़ देते हैं । ऐसे स्पंजी आटें ही स्पंजी पावरोटी बनती हैं । ऐसे यीस्ट साधारणतया टिकिये के रूप में बाजारों में बिकतें हैं । ऐसे यीस्ट से बड़े सूक्ष्म एककोशिक पादप रहते हैं । ये ही वास्तविक यीस्ट, या साक्खारोमिकेस् (saccharomyces ), है । यीस्ट वस्तुत: एक वर्ग का पादप हैं । यह कवकों (fungus) से समानता रखता हैं ।
यीस्ट वायु में सर्वत्र प्रचुरता से पाया जाता हैं । यह उष्णता, आर्द्रता और आहार के अभाव में जीवित रह सकता हैं और इसकी कार्यशीलता बनी रहती हैं । पर 100 डिग्री से0 पर आर्द्र ऊष्मा से यह नष्ट हो जाता हें । यह किणवन उत्पन्न करता हैं । इसी से इसका व्यवहार पावरोटी, सुरा या बीअर आदि बनाने में हजारों वर्षां से चला आ रहा हें, यद्यिप ऐसा होने के कारण का पता पहले पहल कगनार्ड डेलातूर (1771- 1857 ई0 ) ने ही लगाया था । उन्होंनें ही सिद्ध किया था कि यीस्ट सजीव पादप हैं, जो मुकुलन (buddinng) प्रक्रिया से बढ़ता हैं । कार्बनिक पदार्थो, विशेषत: स्टार्च और शर्कराओं में, यीस्ट से किणवन होता हैं । यीस्ट कोशिकाओं की वृद्धि के साथ साथ उनसे
व्यापार का यीस्ट दो प्रकार का होता है, एक शुष्क और दूसरा संपीडित। यीस्ट को मकई के आटे या स्टार्च के साथ मिलाकर टिकिया बनाई जाती है और तब उसे सुखाया जाता है। यही शुष्क यीष्ट है। इस रूप में यीस्ट निष्क्रिय या प्रसुप्त रहता है और बहुत काल तक सुरक्षित रखा जा सकता हैं। उपयुक्त पदार्थो के साथ मिलाने से यह सक्रिय हो जाता है और तब इससे काम लिया जाता है। संपीडित यीस्ट में प्रर्याप्त स्टार्च और आर्द्रता रहती है।
पावरोटी, नाना प्रकार की मदिरा, ब्रांडी, हस्की, रम, बीअर आदि के बनाने में यीस्ट का व्यवहार होता है। औषधियों में इसका व्यवहार प्राचीन काल से होता आ रहा है। कोष्ठबद्धता, चर्मरोग, जठरांत्र रोगों में यीस्ट के लाभकारी सिद्ध होने का दावा किया जाता है।
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[[श्रेणी:कवक]]
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