"गुरु अमर दास": अवतरणों में अंतर

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नाम : अमर दास
जन्म : सम्वत १५३६ (अंग्रेजी वर्ष-१४७९)
जन्मस्थान : बसर्के गिलां, अमृतसर
पिता : श्री तेज भान भल्ला जी
माता : माता बख्त कौर जी
पत्नी : माता मंसा देवी जी
पुत्रा : मोहन जी एवं मोहरी जी
पुत्राी : बीबी दानी जी एवं बीबी भानी जी
गुरू : १५५२ से १५७४
ज्योति जोत : १५७४, गोइन्दवाल
शबद् : ८६९
सवायीये महले तीजे के
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गुरू अंगद साहिब ने गुरू अमरदास साहिब को ÷तृतीय नानक' के रूप में मार्च १५५२ को ७३ वर्ष की आयु में स्थापित किया। गुरू अमरदास साहिब जी की भक्ति एवं सेवा गुरू अंगद साहिब जी की शिक्षा का परिणाम था। गुरू साहिब ने अपने कार्यों का केन्द्र एक नए स्थान गोइन्दवाल को बनाया। यही बाद में एक बड़े शहर के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यहां उन्होंने संगत की रचना की और बड़े ही सुनियोजित ढंग से सिख विचारधारा का प्रसार किया। उन्होंने यहां सिख संगत को प्रचार के लिए सुसंगठित किया। विचार के प्रसार के लिए २२ धार्मिक केन्द्रों- ÷मंजियां' की स्थापना की। हर एक केन्द्र या मंजी पर एक प्रचारक प्रभारी को नियुक्त किया। जिसमें एक रहतवान सिख अपने दायित्वों के अनुसार धर्म का प्रचार करता था। गुरु अमरदास जी ने स्वयं एवं सिख प्रचारकों को भारत के विभिन्न भागों में भेजकर सिख पंथ का प्रचार किया।
उन्होंने ÷गुरू का लंगर' की प्रथा को स्थापित किया और हर श्रद्धालु के लिए ÷÷पहले पंगत फिर संगत'' को अनिवार्य बनाया। एक बार अकबर गुरू साहिब को देखने आये तो उन्हें भी मोटे अनाज से बना लंगर छक कर ही फिर गुरू साहिब का साक्षात्कार करने का मौका मिला।
गुरु अमरदास जी ने सतीप्रथा का प्रबल विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह को बढावा दिया और महिलाओं को पर्दा प्रथा त्यागने के लिए कहा। उन्होंने जन्म, मृत्यू एवं विवाह उत्सवों के लिए सामाजिक रूप से प्रासांगिक जीवन दर्शन को समाज के समक्ष रखा। इस प्रकार उन्होंने सामाजिक धरातल पर एक राष्ट्रवादी व आध्यात्मिक आन्दोलन को उकेरा। इस विचारधारा के सामने मुस्लिम कट्टपंथियों का जेहादी फलसफा था। उन्हें इन तत्वों से विरोध भी झेलना पड़ा। उन्होंने संगत के लिए तीन प्रकार के सामाजिक व सांस्कृतिक मिलन समारोह की संरचना की। ये तीन समारोह थे-दीवाली, वैसाखी एवं माघी ।
गुरू अमरदास साहिब जी ने गोइन्दवाल साहिब में बाउली का निर्माण किया जिसमें ८४ सीढियां थी एवं सिख इतिहास में पहली बार गोइन्दवाल साहिब को सिख श्रद्धालू केन्द्र बनाया। उन्होने गुरू नानक साहिब एवं गुरू अंगद साहिब जी के शबदों को सुरक्षित रूप में संरक्षित किया। उन्होने ८६९ शबदों की रचना की। उनकी बाणी में आनन्द साहिब जैसी रचना भी है। गुरू अरजन देव साहिब ने इन सभी शबदों को गुरू ग्रन्थ साहिब में अंकित किया।
गुरू साहिब ने अपने किसी भी पुत्रा को सिख गुरू बनने के लिए योग्य नहीं समझा, इसलिए उन्होंने अपने दामाद गुरू रामदास साहिब को गुरुपद प्रदान किया। यह एक प्रयोग धर्मी निर्णय था। बीबी भानी जी एवं गुरू रामदास साहिब में सिख सिद्धान्तों को समझने एवं सेवा की सच्ची श्रद्धा थी और वो इसके पूर्णतः काबिल थे। यह प्रथा यह बताती है कि गुरूपद किसी को भी दिया जा सकता है। गुरू अमरदास साहिब को देहांत ९५ वर्ष की आयु में भादों सुदी १४ (पहला आसु) सम्वत १६३१ (सितम्बर १, १५७४) को गुरू रामदास साहिब जी को गुरूपद सौंपने के पश्चात गाईन्दवाल साहिब, जो कि अमृतसर के निकट है, में हुआ था।