"घूर्णाक्षदर्शी": अवतरणों में अंतर

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==यांत्रिक घूर्णदर्शी की संरचना==
घूर्णदर्शी यांत्रिक हो सकता है और एलेक्ट्रानिक भी। यांत्रिक घूर्णदर्शी एक संतुलित चक्र या पहिया होता हैं, जो इस प्रकार आधार वलयों (supporting rings) में स्थापित रहता है कि इसकी तीन [[स्वातंत्र्य संख्याएँ]] (degrees of freedom) होती हैं। इस पहिए को घूर्णक या रोटर (rotor) भी कहते हैं। यह चक्र एक अक्ष या धुरी के चारों और परिभ्रमण कर सकने के लिये स्वतंत्र होता है। इस अक्ष को भ्रमि अक्ष (spinning axis) कहते हैं। यह अक्ष या धुरी एक आधार वलय में उसके क्षैतिज व्यास पर स्थित रहती है और यह वलय स्वंय भी एक अन्य बाह्य वलय में एक क्षैतिज अक्ष के चारों ओर परिभ्रमण कर सकता है। यह अक्ष भ्रमि अक्ष के समकोणिक होता है। बाह्य वलय भी एक ऊर्ध्वाधर अक्ष के चारों ओर घूम सकता है। इस प्रकार इस चक्र या घूर्णक की धुरी किसी भी इच्छित दिशा में इंगित करती हुई रखी जा सकती है। भ्रमि करते समय यह चक्र दो मूल घूर्णदर्शी गुणों का प्रदर्शन करता है : (1) अवस्थितत्व (inertia) (2) पुरस्सरण (precession)। घूर्णदर्शी को भली भाँति समझने के लिये इन गुणों के लक्षणों को भी समझ लेना नितांत आवश्यक है।
[[चित्र:Gyroscope precession.gif|right|thumb|250px|ghuurNadarshii kaa rurassarana (precession)]]
[[न्यूटन का गति का पहला नियम|न्यूटन के प्रथम गतिनियम]] के अनुसार कोई भी पिंड जिस अवस्था में रहता है उसी में बना रहना चाहता है और उस अवस्था में किसी प्रकार के परिवर्तन का विरोध करने की प्रवृत्ति प्रदर्शित करता है। इस प्रवृत्ति को [[जड़त्व]] (inertia) कहते हैं। अपनी धुरी पर भ्रमण करता हुआ रोटर अपने प्रारंभिक तल में ही परिभ्रमण करना चाहता है और कोई बलघूर्ण (torque) स्थापित करने पर उसका विरोध करता है।
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==घूर्णदर्शी का सिद्धांत==
[[चित्र:Gyroscope operation.gif|right|thumb|300px|तीनों अक्षों में घूमने के लिये स्वतंत्र '''घूर्णदर्शी''' : बाहरी वलय का झुकाव चाहे कुछ भी हो, रोटर की स्पिन-अक्ष की दिशा नहीं बदलेगी]]
घूर्णक्षस्थापी की क्रियाएँ सभी परिभ्रमणशील या घूर्णशील पिंडों में दृष्टिगोचर होती है, किंतु अधिक कोणीय संवेग (momentum) वाले पिंडों में ये क्रियाएँ अधिक स्पष्ट होती हैं। ज्ञातव्य है कि किसी पिंड का कोणीय संवेग '''H = m r2w ''', जहाँ m = उस पिंड की संहति, r = उस पिंड के गुरुत्व केंद्र की भ्रमिअक्ष से दूरी तथा w उसका भ्रमिवेग है। कोणीय संवेग के कारण ही घूर्णाक्षस्थापी में दृढ़ता तथा जड़त्व के गुणों का समावेश होता है।
 
किसी पिंड पर जब कोई बलयुग्म कार्य करता है, तब उस पिंड में बलयुग्म (couple) के अक्ष के चारों ओर एक कोणीय संवेग उत्पन्न हो जाता है, जिसके कारण पिंड में उस अक्ष के चारों और भ्रमि करने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है। जितने समय तक वह बलयुग्म कार्य करता रहेगा उतने समय तक उस पिंड का कोणीय वेग बढ़ता ही जायगा।
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==बाहरी कड़ियाँ==
* [http://usdynamicscorp.com/whatsnew/news/LL_Gyro_Announcement.pdf U.S. Dynamics Long Life Gyroscopes]
* [http://usdynamicscorp.com/literature/literatures.asp?mystr=precision_instruments&catID=93 Technical White Papers on Gyroscopes]
* [http://www.systron.com/tech.asp Description of the Systron Donner Inertial MEMS gyroscope]
* [http://www.integerspin.co.uk/gyro1.htm The Precession and Nutation of a Gyroscope]
* [http://www.gyroscopes.org/ Everything you needed to know about gyroscopes]
* [http://www.mae.cornell.edu/cmg/ Project in which gyroscopes are used to drive a robotic arm]
* [http://www.sagem-ds.com/eng/site.php?spage=02010301 Examples of gyroscopes]
* [http://www.maverickexperiments.com/gyro/gyro.html An explanation of gyroscopes]
;शोधपत्र
* [http://www.astrise.com/research/library/memsgyro.pdf Theory and Design of Micromechanical Vibratory Gyroscopes] Vladislav Apostolyuk
 
;व्याख्यान
* [http://www.gyroscopes.org/1974lecture.asp The Royal Institution’s 1974–75 Christmas Lecture] Professor Eric Laithwaite
 
[[श्रेणी:संसूचक]]