"ब्रह्म": अवतरणों में अंतर
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'''ब्रह्म''' (संस्कृत : ब्रह्मन्) [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] (वेद परम्परा, [[वेदान्त]] और [[उपनिषद]])
== परब्रह्म ==
परब्रह्म या परम-ब्रह्म ब्रह्म का वो रूप है, जो निर्गुण और असीम है । "नेति-नेति" करके इसके गुणों का खण्डन किया गया है, पर ये असल मे अनन्त सत्य, अनन्त चित और अनन्त आनन्द है । [[अद्वैत वेदान्त]] में उसे ही [[परमात्मा]] कहा गया है,
ब्रह् ही सत्य है,बाकि सब मिथ्या है।
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वह ब्रह्म ही जगत का नियन्ता है।
== अपरब्रह्म ==
अपरब्रह्म ब्रह्म का वो रूप है, जिसमें अनन्त शुभ गुण हैं । वो पूजा का विषय है, इसलिये उसे
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'''आनन्द ब्रह्म'''-
श्रुतियों में ब्रह्म को आनंद भी कहा है. पहले आनन्द को जान लें. आनन्द का अर्थ सुख या असीम सुख नहीं है. यह वह स्थिति है जहाँ सुख और दुःख का कोई स्थान नहीं है. यह पूर्ण शुद्ध ज्ञान, परम बोध की स्थिति है. कबीर कहते हैं, वहाँ ज्ञान ही ओढ़नी है ज्ञान ही बिछावन है. नूरे ओढ़न नूरे डासन. मूल तत्त्व परम ज्ञान है जिसे आनन्द कहा है. अंतिम स्थिति
उपनिषदों में ब्रह्म के लिए आनन्द शब्द का प्रयोग -
रसो वै सः.२-७- तैत्तिरीयोपनिषद्
रस को पाकर जीव यह
होता परमानन्द
आनंद आकाश नहिं होत यदि
को जीवे कोऊ रक्ष प्राण
जो सबको आनंद दे
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नहीं कोउ भय होत.१-९- तैत्तिरीयोपनिषद्
तैत्तिरीयोपनिषद्
इस प्रकार
जान ज्ञान विज्ञान को
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सन्दर्भ -सरल वेदांत -बसंत प्रभात जोशी
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