"नासदीय सूक्त": अवतरणों में अंतर

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'''नासदीय सूक्त''' [[ऋग्वेद]] के 10 वें मंडल कर 129 वां सूक्त है. इसका सम्बन्ध ब्रह्माण्ड विज्ञान और [[ब्रह्मांड]] की उत्पत्ति के साथ है। माना जाता है की यह सूक्त ब्रह्माण्ड के निर्माण के बारे में काफी सटीक तथ्य बताता है. इसी कारण दुनिया में काफी प्रसिद्ध हुआ है.
 
== संदर्भ ==
नासदीय सूक्त के रचयिता ऋषि '''प्रजापति परमेष्ठी''' हैं. इस सूक्त के देवता '''भाववृत्त''' है. यह सूक्त मुख्य रूप से इस तथ्य पर आधारित है कि ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई होगी.<br />
 
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'''अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आबभूव ॥६॥'''<br />
'''अन्वय'''-कः अद्धा वेद कः इह प्रवोचत् इयं विसृष्टिः कुतः कुतः आजाता , देवा अस्य विसर्जन अर्वाक् अथ कः वेद यतः आ बभूव ।<br />
'''अर्थ''' - कौन इस बात को वास्तविक रूप से जानता है और कौन इस लोक में सृष्टि के उत्पन्न होने के विवरण को बता सकता है कि यह विविध प्रकार की सृष्टि किस उपादान कारण से और किस निमित्त कारण से सब ओर से उत्पन्न हुयी। देवता भी इस विविध प्रकार की सृष्टि उत्पन्न होने से बाद के हैं अतः ये देवगण भी अपने से पहले की बात के विषय में नहीं बता सकते इसलिए कौन मनुष्य जानता है जिस कारण यह सारा संसार उत्पन्न हुआ। <br /><br />
 
'''इयं विसृष्टिर्यत आबभूव यदि वा दधे यदि वा न ।'''<br />
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[[en:Nasadiya Sukta]]
[[it:Nāsadīya sūkta]]
[[lt:NasadiyaNasadija Suktasūkta]]